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________________ 2. किसी भी साधु द्वारा यदि फोन किया जावे तो उन से बात न करें व उन्हें कहे कि फोन करना शास्त्र सम्मत नहीं है। 3. साधु द्वारा प्रायोजित कार्य के संघपति न बनें। 4. साधु द्वारा प्रायोजित अथवा प्रेरित शास्त्र विरुद्ध होमादि कार्य में हिस्सा न ले। 5. साधु द्वारा वाहन उपयोग, फोन उपयोग, संडास उपयोग अथवा अन्य बिजली संचालित उपकरणों के उपयोग का विरोध करें व ऐसी वस्तुएं उन्हें न वोहराएं। 6. साधु को किसी भी संस्था के संचालन वही वट का कोई पद न दें व लेने को कहे तो विवेकपूर्वक विरोध करे। सभी गांवों के संघ प्रमुख, व्यवस्थापकों व ट्रस्टियों से निवेदन - साधु धर्म की रक्षा करनी एवं साधुओं की आचरणा का पालन करने में सहायक बनना हम सकल संघों का दायित्व है। इसे जिनाज्ञा समझकर पालन करना हमारा धर्म है अतः निम्न विनंतियों के बारे में कार्य करने का उपयोग रखे : 1. किसी भी पौषधशाला में बिजली का कनेक्शन न रखें । 2. किसी भी साधु को बिजली युक्त सुविधाएं, पंखे, कूलर , एयरकंडिशन, फोन, मोबाइल इत्यादि की सुविधा पौषधशालाओं में या अन्यत्र कही भी न दे एवं न दिलवाने का उपयोग रखे। 3. सामान्य संयोगों में सामने से गोचरी की व्यवस्था न करे। 4. सामान्य संयोगों में वाहन व्यवस्था (व्हील चेयर) की व्यवस्था न करावे । 5. चातुर्मास व प्रायोजन (उपधान, महोत्सव इत्यादि) अशक्त व बीमारी के अलावा स्थिरवास पर रोक लगाए एवं स्थायी रूम की व्यवस्था विशेषतः तीर्थ स्थान पर न करें । 6. गच्छ एवं एक दूसरे साधु समुदाय में आपस में सामंजस्य रहे वह निष्कारण संघर्ष का वातावरण न बने इसलिए पूर्णरूपेण ईमानदारी से काम करें। अतः हम सभी धर्मप्रेमी जिनाज्ञा के पालक श्रावकों का कर्तव्य है कि इस प्रकार की साधुओं की संयम मर्यादानाशक राजनीतिक व सामाजिक, व्यवसायिक कार्यों में रुचि, प्रेरणा एवं प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहभाग रूप पार को रोक कर उन साधुओं के दीक्षा समय की उत्तम भावनाओं के अनुरूप शुद्ध चारित्र के पालन में सहायक बनें जिससे उन्होंने जिस उद्देश्य से दीक्षा ली है और उनके गुरुजनों ने जिस उद्देश्य से दीक्षा दी है वह पूर्ण हो और वे अपने स्वयं की आत्मा के उत्थान में प्रयत्नरत रहकर हम सभी को तारने में सहायक बन सके। इसी कामना के साथ जिनाज्ञा विरुद्ध कुछ भी यदि लिखा हो तो मिच्छामि दुक्कडं । प्राप्तः 23.09.10 * 15, दुरु महल, चौथा माला, 84,मरीन ड्राइव मुम्बई - 400020 (यह टिप्पणी श्री बाफना के साथ 3 अन्य महानुभावों द्वारा संयुक्त रूप से लिखी गयी है-सम्पादक) 86 अर्हत् वचन, 23 (3), 2011
SR No.526590
Book TitleArhat Vachan 2011 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2011
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size32 MB
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