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________________ तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है । उपसंहार में उन्होंने जैन धर्म के बारे में जो अपना निष्कर्ष दिया है, उसका एक अंश नीचे उद्धृत है - 'जैन धर्म अपने आप में लगभग निर्दोष एवं पूर्ण है। इसमें जो कमियां हैं वे वस्तुतः विवेचित विषय के बहुत विस्तृत होने के कारण हैं, न कि इसके दर्शन (तत्वज्ञान) जनित।'' भिन्न धर्म की अनुयायिनी एक पाश्चात्य लेखिका द्वारा एक प्राच्य धर्म का इतना सटीक विश्लेषण अलादकारी है। जैन दर्शन सचमुच इतना सूक्ष्म, इतना गहन और चिंतन के विभिन्न क्षितिजों पर इतना फैला हुआ है कि एक अध्ययनशील और जिज्ञासु व्यक्ति भी इसकी संपूर्ण गहराई तक पहुंचते-पहुंचते स्वयं को थका हुआ सा अनुभव करता है । क्यों हुआ ऐसा? इसका विशाल कलेवर क्या अकारण ही है? भारतीय संस्कृति के दो प्रवाह - वैदिक परम्परा और श्रमण परम्परा - एक दूसरे को समृद्ध करते हुए साथ-साथ चले। श्रमण परम्परा की पहली निष्पत्ति जैन दर्शन के रूप में हुई, दूसरी उसके कई हजार वर्षों बाद बौद्ध दर्शन के रूप में। इतिहासकार अब एकमत हैं कि जैन धर्म भारत का प्राचीनतम जीवित धर्म है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह की धुरी पर श्रमण परम्परा का सूत्रपात किया। भगवान महावीर जैनों के चौबीसवें तीर्थकर हुए। उन्होंने अपने पूर्व तीर्थंकरों के चिंतन मंथन को एक क्रमबद्ध और व्यवस्थित दर्शन का रूप दिया। अनेकांत और अनाग्रह की भित्ति पर सब जीवों के प्रति आत्मवत आचरण और संयममय जीवन शैली का रूप लेकर जैन धर्म का अवतरण हुआ। इस जगह से मैं देखता हूँ तो लगता है कि जैन दर्शन के बारे में ऐलिजाबेथ शार्प का निष्कर्ष और मेरे पिताजी की बात दोनों का एक ही अर्थ है। इसलिए आगे के विवेचन में मैंने दोनों के कथन को एक साथ ही समझने का प्रयत्न किया है। बाल मनोविज्ञान के अनुरूप बच्चों को सहज रूप में पढ़ना-लिखना सिखाने को आधुनिक शिक्षण शैली की जनक डॉ. मारिया मॉन्टेसरी ने एक वैज्ञानिक की बड़ी सुंदर परिभाषा दी है - 'हम उस प्रकार के व्यक्ति को वैज्ञानिक कहते हैं जो प्रयोग और परीक्षण को जीवन के अगाध सत्य की खोज का एवं उसके लुभावने रहस्यों को अनावृत्त करने का साधन मानता है और जो इस उद्यम में प्रकृति के गूढ़ भेदों के प्रति अपने अंतर में एक ममत्व जग जाने की अनुभूति करता है, इतना उत्कट कि स्वयं अपना अस्तित्व भूल जाता है। इतने कम शब्दों में एक वैज्ञानिक का इतना सटीक विश्लेषण सचमुच अनूठा है। अतनी ही अनूठी यह बात भी कि डॉ. मारिया द्वारा एक वैज्ञानिक की यह परिभाषा अनायास भगवान महावीर के जीवन की संपूर्ण व्याख्या है। ___ भगवान महावीर के समूचे चिंतन की पृष्ठभूमि में डॉ. मारिया की परिभाषा के वैज्ञानिक की तरह, स्वयं को भूलकर प्रकृति के गहन रहस्यों को उनके सूक्ष्मतम रूप में जान लेने की उत्कट अभिलाषा थी। अपने ध्येय की प्राप्ति हेतु उन्होंने राजकुल को छोड़ा, सांसरिक भोगों को त्यागा और साधना में लीन होकर विराट की जटिल सूक्ष्मताओं की गवेषणा में डूब गए। जो दृश्यमान है, क्या प्रकृति उतनी सी ही है ? जो स्पर्शनीय है, क्या मनुष्य के जानने के लिए उससे बाहर कुछ नहीं? आकार और अस्तित्व क्या एकार्थक हैं ? प्रकृति में क्या निराकार कुछ होता ही नहीं? इन जिज्ञासाओं के साथ उनकी जो अध्यात्म यात्रा प्रारंभ हुई, वह मानवीय आचार और संवेदनाएं, कारण और परिणाम एवं क्रिया और प्रतिक्रिया के अटूट संबंधों की अनिवार्य निष्पत्तियों के अनुसंधान के साथ समाप्त हुई। 30 अर्हत् वचन, 23 (3), 2011
SR No.526590
Book TitleArhat Vachan 2011 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2011
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size32 MB
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