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'मनसि वचसि काये पुण्यपीयूषपूर्णा - स्त्रिभूवनमुपकार श्रेणिभिः प्रीणय तः । परगुणपरमाणून पर्वतीकृत्य नित्यं, निज हृदि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः ॥5
दिव्यावदान, पृष्ठ 434 2. आचार्य वीरसेन, धवला, 13/5, 4, 26/63/1 3. आचार्य अकलंकदेव, तत्त्वार्थराजवार्तिक, 9/22/622 4. आचार्य वादिभ सिंह, क्षत्रचूड़ामणि, 2/15 5. भर्तृहरि, नीतिशतक, 79 प्राप्तः 27.06.11
जैन विद्या का पठनीय षट्मासिक
JINAMANJARI
JINAMANJARI Editor -Dr. S.A. Bhuvanendra Kumar Periodicity - Bi-annual (April & October) Publisher -Brahmi Society, Canada U.S.A. Contact - Dr. S.A. Bhuvanedra Kumar
4665, Moccasin Trail, MISSISSAUGA, ONTARIO CANADA-1472W5
अर्हत् वचन, 23 (3), 2011