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________________ शोध संस्थान शोध संस्थान के अन्तर्गत आधारभूत सुविधाओं के विकास की श्रृंखला में सन्दर्भ ग्रन्थालय (पुस्तकालय) का विकास एवं त्रैमासिक शोध पत्रिका अर्हत् वचन के प्रकाशन के साथ ही शोध गतिविधियों के विकास के क्रम में व्याख्यानमालाओं का आयोजन, श्रेष्ठ शोध आलेखो के लेखन को प्रोत्साहित करने हेतु अर्हत वचन पुरस्कार योजना, जैन इतिहास एवं पुरातत्व पर मौलिक शोध के प्रोत्साहन हेतु ज्ञानोदय पुरस्कार का संचालन एवं जैन विद्याओं के क्षेत्र में मौलिक लेखन को प्रोत्साहित करने हेतु कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार योजना संचालित की जा रही है। यत्र - तत्र विकीण जैन पुरावशेषों के अभिलेखीकरण, मूल्यांकन एवं संरक्षण को विशेष महत्व देते हुए पुरातत्व का एक अलग प्रकोष्ट गठित किया गया। इसके अन्तर्गत गोपाचल (ग्वालियर) के सर्वेक्षण का कार्य पूर्ण करके आख्या का प्रकाशन किया जा चुका है। जैन ग्रन्थों की मूल भाषा प्राकृत के पठन-पाठन को विकसित करने हेतु प्राकृत विद्या शिक्षण - प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया। जैन संस्कृति की रक्षा हेतु श्री सत्युत प्रभावना ट्रस्ट के सहयोग से प्रकाशित ग्रन्थों एवं पांडुलिपियों के सूचीकरण की योजना 1999 से मार्च 2001 तक सचालित की गई। सम्प्रति भारत सरकार के सहयोग से जैन पांडुलिपियों को राष्ट्रीय पंजी के निर्माण का कार्य मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र अंचल में गतिमान है। प्रकाशित ग्रन्थों के सचीकरण का कार्य भी ज्ञानपीठ द्वारा स्वतंत्र रूप से चलाया जा रहा है। सिरिभूवलय की डिकोडिंग एवं अनुवाद का कार्य भी चल रहा है। शोध संस्थान की विभिन्न गतिविधियों की बिन्दुवार आख्या निम्नवत है ----- सन्दर्भ ग्रन्थालय हमारे सन्दर्भ ग्रन्थालय/पुस्तकालय में 31 मार्च 2003 तक 1200 पांडलिपियाँ एवं लगभग 11,000 ग्रन्थ संकलित किये जा चुके हैं। 350 पत्र-पत्रिकाएँ भी आती हैं। आधुनिक तकनीक का प्रयोग करते हुए पुस्तकालय में उपलब्ध समस्त पुस्तकों एवं पांडुलिपियों की स्चियों को कम्प्यूटर पर उपलब्ध कर दिया गया है। इससे किसी भी पुस्तक की उपलब्धता/अनुपलब्धता एव पुस्तकालय में उसके स्थान बाबद पूर्ण सूचना क्षण भर में कम्प्यूटर पर उपलब्ध हो जाती है। कम्प्यूटरीकरण का यह कार्य डॉ. दिलीप योबरा, अमेरिका द्वारा उदारतापूर्वक कम्प्यूटर सिस्टम आदि उपलब्ध कराये जाने के कारण संभव हुआ है। एतदर्थ हम उनके एवं उनके परिवार के प्रति आभार ज्ञापित करते हैं। पुस्तकालयों में पुस्तकों को सुव्यवस्थित रखने हेतु आवश्यक बुक सेल्फ क्रय करने हेतु हमें श्री शियकुमार जैन (कलकत्ता) के माध्यम से श्री जैन मिश्रीलाल पद्यावती फाउन्डेशन ट्रस्ट द्वारा 1,00,000-00 (एक लाख रुपये) का सहयोग प्राप्त हुआ है। श्री राजेन्द्रकुमार जैन एवं श्रीमती सुधा जैन (न्यू पुष्पक रेस्टॉरेन्ट, इन्दौर) ने 1 बुक सेल्फ, डॉ. रमा जैन (छतरपुर) तथा डॉ. सविता जैन (उज्जैन) ने भी 1-1 बुक सेल्फ पुस्तकालय को सहर्ष प्रदान की है, एतदर्थ संस्था उनकी आभारी है। शोध त्रैमासिकी अहंत वचन सितम्बर 1988 में पत्रिका के प्रवेशांक के प्रकाशन के साथ ही दिसम्बर 2002 तक 3 संयुक्तांकों सहित इसके 56 अंक प्रकाशित किये जा चुके हैं। 14 वर्षों में प्रकाशित त्रैमासिकी के 56 अंकों की सामग्री का विस्तृत विवरण इसी अंक में पृ. 6 106 अर्हत् वचन, 15 (1-2), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526557
Book TitleArhat Vachan 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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