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________________ प्रतिवर्ष शास्त्र सुखाने के क्रम में जून 2000 में भी शास्त्र सुखाये गये। उस समय एक अलमारी के शास्त्र संख्या 751 से 955 तक 204 ग्रन्थ पूर्णतया भींग गये। शास्त्र मिलान के क्रम में हमने जब ये शास्त्र देखे तो भींगने के कारण पत्र आपस में चिपके हुए थे। इन्हें अलग - अलग करने पर पत्र फट रहे हैं और स्याही एक दूसरे में उतर गई है। कई शास्त्रों के पन्नों की स्याही धुल जाने से अवाच्य हो गये हैं। इस भण्डार की यह सबसे बड़ी क्षति है। भण्डार के व्यवस्थापक शास्त्रीजी को शास्त्र भींगने की जानकारी तो थी किन्तु भींगने से शास्त्र चिपक गये हैं, यह जानकारी उन्हें तब हुई जब हमने शास्त्र खोले। हमारे सुझाव : इस भण्डार का सर्वेक्षण व मिलान करने पर इसमें सुधार के लिये हमारे निम्नलिखित सुझाव हैं - 1. पानी में भीग जाने के कारण जिन शास्त्रों के पन्ने आपस में चिपक गये हैं, उन्हें एक अच्छे ट्रीटमेंट की आवश्यकता है। हमारा सुझाव है कि यदि इन शास्त्रों को वाष्पीय प्रक्रिया द्वारा पुन: नम (हल्का गीला) करके पत्र अलग-अलग किये जायें तथा उन्हें छाया में सुखाया जाये तो काफी कुछ उपयोगी हो सकते है। 2. भण्डार की व्यवस्था पिछले 60-62 वर्ष से श्री पं. चन्दनलाल जैन शास्त्री देखते आये हैं, अब वे शारीरिक रूप से अधिक सक्षम नहीं हैं तथा सीढ़ियाँ चढ़कर भण्डार की नियमित देख - रेख नहीं कर पाते हैं। उनके निर्देशन में एक सक्षम और जानकार व्यक्ति रहे जो शास्त्रीजी की तरह भण्डार की नियमित देख - रेख कर सके। 3. अधिकांश हस्तलिखित शास्त्र दीवालों की अलमारियों में दीवार से सटाकर रखे गये हैं। इन्हें अधिक समय तक नहीं देखे जाने पर कभी दीमक आदि कीट लग सकते हैं। इनके संरक्षण की उच्च मानक व्यवस्था तो वहाँ संभव प्रतीत नहीं होती, तो भी शास्त्रों को लोहे की शीशा लगी अलमारियों में रखा जाना चाहिये। 4. शास्त्रों को खड़ा टिका कर पंक्तिबद्ध प्रकाशित पुस्तकों की तरह संयोजित किया गया है इसमें शास्त्रों के पत्रों के किनारे मुड़ते हैं, इन्हें सीधा उपरिम-उपरिम क्रम में रखना चाहिये। सचित्र ग्रन्थ : इस भण्डार में लगभग एक दर्जन ग्रंथ सचित्र हैं। उनमें श्रुतस्कंध नक्शा - 297, तीर्थकर चित्रावली - 329. जिनसप्रभात स्तोत्र - 606, नवकारकल्प - 727, ? यंत्र - मंत्र - 728, शकुन - 772, त्रिलोक वर्णन - 967 और चौसठ योगिनी - 1071 प्रमुख हैं। तीर्थकर चित्रावली में चौबीस तीर्थंकरों के तथा अन्य चित्र हैं, आगमानुसार जिन तीर्थकरों का वर्ण स्वर्ण समान है उनके चित्र स्वर्ण से चित्रित हैं। जिनसुप्रभात स्तोत्र में पत्र 7 हैं, यह संवत् 1525 का है। इसमें 5 रंगों - लाल, काला, नीला, फिरोजी, सुनहरी का प्रयोग किया गया है। पत्र की पृष्ठ भूमि में लाल रंग है, प्रत्येक पत्र में 7 पंक्तियाँ हैं, एक पंक्ति काली स्याही से, दूसरी पंक्ति स्वर्ण से, इसी क्रम में लिखा गया है। 2 पत्र पूर्ण स्वर्ण मसि में लिखे हैं। पत्र के बीच में तथा बार्डर पर चित्र हैं। प्रशस्ति में संवत 1525 तथा 'श्री मूलसंघे श्री विद्यानंदि तद्दीक्षित शिष्या ................ लिखाप्यदत्त' वाच्य है। ग्रन्थ जीर्ण होने से उसका लेमिनेशन करवा लिया गया है, किन्तु पाण्डुलिपि की अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526550
Book TitleArhat Vachan 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2001
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size14 MB
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