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________________ के सम्मुख बैठे हैं व कथानुसार अभयमति और अभयरूचि मुनिश्री के दर्शन करते ही अचेत हो गये। जिन्हें अचेत अवस्था में लेटे दिखाया है। अभयमति को दोनों हाथों से पकड़े एक राज परिवार की स्त्री है, उनके पीछे तीन अन्य स्त्रियां हैं, जिनमें से एक चँवर दुरा रही है व अन्य दो स्त्रियां आपस में विचार विमर्श करते दिखाई देती हैं। वे चारों स्त्रियां सफेद लाल धारी की साड़ी पहने है। राजपुरुषों ने सफेद लालधारी व छींटदार धोती पहनी है व दाऐं कंधे पर उत्तरीय डाला हुआ है। मुनिश्री के पार्श्व में एक वृक्ष है उसको तने सहित अंदर की ओर झुका बताया है। छोटी-छोटी पत्तियों को मिलाकर एक बड़े पत्तेनुमा वृक्ष का अंकन किया गया चित्र के ऊपरी भाग में आकाश में तीन लहरे गहरे नीले सफेद, हल्के नीले रंग में दिखाई है। जो नदी सी प्रतीत होती है। चित्र के ऊपर लेखन हैं। 2" एक अन्य चित्र श्रृंगार का है जिसमें एक दासी रानी को शीशा दिखा रही है व दूसरी श्रृंगार थाली पकड़े हैं। आकृति अनुपातिक दृष्टि से बैडोल है। जसहर चरिउ की मोजमाबाद प्रति में कुल मिलाकर छोटे बड़े 63 चित्र हैं तथा ब्यावर प्रति में लगभग 70 चित्र हैं। इनमें से कुछ चित्रों को छोड़ अनुपातिक व संयोजन की दृष्टि से उच्च स्तर के हैं। संतिणा चरिउ (शांतिनाथ चरिउ ) संतिणाह चरिउ की मात्र एक ही प्रति उपलब्ध है और वह भी त्रुटित है, जो अंश प्राप्त हैं। उसमें कुल मिलाकर 48 रंगीन चित्र हैं | 22 संतिणा चरिउ की पाण्डुलिपि के एक चित्र (1426 - 1400 ई.) में शांतिनाथ भगवान को परिचारकों के साथ राजसी वेशभूषा में दिखाया है। साम्राज्य का द्योतक छत्र उनके ऊपर सुशोभित है। सिंहासन चौकी पर बैठे हैं। उनके सामने उनके दो परिचारक जिनमें से एक बैठा है व दूसरा दोनों हाथ आगे बांधे खड़ा है। सम्पूर्ण पृष्ठभूमि लाल रंग की है। वेशभूषा तंग पजामा व छोटा कुर्ता है दायें कंधे पर से बायें कंधे पर उत्तरीय फहरा रहा है। सिर पर साफा है। सामान्यतः वेशभूषा फारसी शैली से प्रभावित है। आनुपातिक दृष्टि से आकृति बेडोल सी है लेकिन मुद्राओं में सजीवता है। 23 - इन पोथी चित्रों को देखने से ज्ञात होता है कि पासणाह चरिउ व जसहर चरिउ दोनों पाण्डुलिपियां रंगों के चयन, उन पर सर्वत्र की गई हल्के पीले रंग की वार्निश तथा विषय संयोजन आदि एक ही शैलीगत मान्यताओं से अनुशासित हैं। नारियों को साड़ी और पुरुषों को प्रायः धोती एवं उत्तरीय पहने दर्शाया है। दोनों पाण्डुलिपियों के दृश्य चित्रों के अंकन में किसी प्रकार का कोई विशेष अंतर नहीं है। इन दोनों पाण्डुलिपियों की शैली से थोड़ा भिन्न लेकिन इन्हीं की परम्परा में चित्रित संतिणाह चरिउ पाण्डुलिपि के चित्रों की रंग योजना में हल्के रंगाभासों को प्राथमिकता दी गई है। अनुपातिक दृष्टि से आकृति का अंकन सही नहीं है, सिर शरीर के अनुपात में बड़ा, आंखें उभरी बनाई गई है। पहनावे में तंग पजामा, छोटा कुर्ता, सिर पर साफा, इसके साथ पटका एवं उत्तरीय यह वेषभूषा सिकन्दर नामा भारत कला भवन में सुरक्षित, लौर चंदा एवं तुबिन्गेन के हज्मा नामा की पाण्डुलिपि के चित्रों में दर्शायी वेशभूषा के मूलरूप से मिलती जुलती है। 24 रइधू रचित इन पोथी चित्रों में पुरुष व नारी अंकन के साथ प्राकृतिक चित्रण भी किया गया है। मानवाकृतियों में जहाँ जड़ता एवं स्थूलता है, वहीं धीरे-धीरे आकृति अंकन अधिक सूक्ष्मतर व कौशल से हुआ । 25 मानवाकृतियों के चेहरे में नाक नुकीली व अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 54 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526550
Book TitleArhat Vachan 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2001
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size14 MB
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