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________________ भैया भगवतीदास भी औरंगजेब के शासन काल में ही हुये थे। इनकी जाति अग्रवाल तथा गौत्र बंसल था। इनका रचना काल सन् 1674 - 1698 है। 'ब्रह्म विलास' की प्रशस्ति में ये लिखते हैं कि उस समय औरंगजेब का राज्य था, जिसकी आज्ञा अभंग रूप से बहती थी। नृपति की उपकार दृष्टि के कारण ईति - भीति कहीं पर व्याप्त नहीं थी - 'जम्बू द्वीप सु भारत वर्ष, तामें आर्य क्षेत्र उत्कर्ष। तहां उग्रसेन पुर थान, नगर आगरा नाम प्रधान॥ नृपति तहां राजै औरंग, जाकी आज्ञा वहै अभंग। ईति- भीतिव्यापैनहिंकोय,यह उपकारनपतिकोहोय॥5 बुलाकी दास मूलत: बयाना के रहने वाले थे। तदुपरान्त वे जहानाबाद आकर रहने लगे। ये अग्रवाल जाति के थे इनका गौत्र गोयल था। इनका रचनाकाल सन् 1680-1697 रहा है। ये औरंगजेब के शासन के बारे में लिखते हैं - 'नगर जहानाबाद में, साहिब औरंग साहि। विधिना तिस छत्तर दियो, रहे प्रजा सुख माहिं।।' कवि विनोदीलाल भी अग्रवाल जाति के थे इनका गोत्र गर्ग था। ये साहिजादपुर (शाहजहांपुर) के रहने वाले थे। इनका रचना समय सन् 1693 का है। इन्होंने तो औरंगजेब की अत्यधिक प्रशंसा की है। ये लिखते हैं - 'औरंग साहिबली को राज। पातसाह हित सिरताज। सुख विधान सक बंध नरेस। दिल्ली पति तप तेज दिनेस। अपने मत में सम्यक् बंत। शील शिरोमणि निज तियकंत॥ दीप दीप है जाकी आन। रहै साह अरू संका मान।। साहिजहां के वर फरिजंद। दिन-दिन तेज बढ़े ज्यों वन्द। भयो चकत्ता उनस उदीस। सिंह बली बन जैसे होत॥" यहाँ पर विचारणीय यह है कि यदि औरंगजेब की नीतियाँ इस्लामेतर विरोधी होती तो ये कवि उसकी आलोचना करते, प्रशंसा क्यों करते? एक ओर औरंगजेब हिन्दू मंदिरों को नष्ट करवा रहा था, दूसरों ओर वह इन कवियों का प्रशंसा पात्र भी बना रहा। अत: औरंगजेब की धार्मिक नीति हिन्दू विरोधी रही हो ऐसा मानना गलत ही होगा। यहाँ कोई यह शंका कर सकता है कि औरंगजेब जैनों के प्रति अधिक उदार रहा होगा। लेकिन ऐसा मानना भ्रम है। गैर - मुलसमानों के प्रति उसकी नीति एक सी ही थी। वैसे भी जैनों के आचार - विचार, रहन - सहन तथा यहां तक कि पूजा - पाठ आदि हिन्दुओं से पूर्णत: मेल खाते हैं। जैनों तथा हिन्दुओं के मंदिर भी बाहर से एक से ही होते हैं। एक बात यह और कि उपरोक्त कवियों में तीन कवि अग्रवाल जाति के थे। अग्रवाल जैनों तथा अग्रवाल हिन्दुओं में बहुत पहले से ही शादी-विवाह होते रहे है। इन कवियों का सम्बन्ध अग्रवाल हिन्दुओं से भी होना अवश्यम्भावी है। एक ओर इन कवियों के (हिन्दू) सम्बन्धियों के साथ अन्याय / अत्याचार हो रहा हो दूसरी ओर ये अन्याय करने वाले की प्रशंसा करें, ऐसा होना असंभव ही है। मंदिर तुडवाने के कारण - अब प्रश्न यह है कि यदि वह हिन्दू धर्म विरोधी नहीं था तो उसने हिन्दू मंदिरों को तड़वाने के आदेश क्यों दिये? यहां एक बात यह ध्यान रखनी है कि उसने हिन्दू अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526550
Book TitleArhat Vachan 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2001
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size14 MB
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