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________________ सिद्धान्तचक्रवर्ती के समय से एक शताब्दी से भी बाद का है। अत: वसुनन्दि के गुरु नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव और गोम्मटसारादि के रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती की अभिन्नता कथमपि संभव प्रतीत नहीं होती है। वसुनन्दि की भी सिद्धान्तिदेव उपाधि है। अत: उनके गुरु की भी यह उपाधि रही है, यह सर्वथा ठीक ही लगता है। नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव नयनन्दि के शिष्य हैं और वसुनन्दि के गुरु, जबकि नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती अभयनन्दि के शिष्य हैं और चामुण्डराय के गुरु। अत: दोनों की भिन्नता सुस्पष्ट है। द्रव्यसंग्रह की रचना आश्रमनगर में उल्लिखित है। इतिहासज्ञ विद्वान् राजस्थान के केशोरायपाटन को ही आश्रमनगर मानते हैं।16 आश्रमपत्तन - आशारम्भपट्टण - केशोरम्यपट्टन - केशोरायपाटन। यह भाषा वैज्ञानिक विकासक्रम इस तथ्य का समर्थन करता प्रतीत होता है। केवलपट्टन या पुटभेदन नाम से भी इस नगर के प्राचीन उल्लेख मिलते हैं। प्राचीन काल में यह नगर राजा भोजदेव के परमार साम्राज्य के अन्तर्गत मालवा में रहा है। इतिहास इस सत्य का साक्षी है। इससे भी स्पष्ट हो जाता है कि द्रव्यसंग्रहकार नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव धारानरेश भोजदेव से सम्बद्ध रहे हैं, जबकि नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती तो राजा भोज से लगभग एक शतक पूर्ववर्ती हैं। नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव की दो ही रचनायें उपलब्ध हैं - लघुद्रव्यसंग्रह और वृहद्रव्यसंग्रह। भाषा की दृष्टि से भी सिद्धान्तचक्रवर्ती और सिद्धान्तिदेव की भिन्नता देखी जा सकती है। चतुर्थ नेमिचन्द्र कन्नड के कवि हैं तथा इनका समय ईसवी सन् की तेरहवीं शताब्दी है। पञ्चम नेमिचन्द्र अपभ्रंश के कवि हैं तथा इनका समय ईसवी सन् की पन्द्रहवीं शताब्दी है। छठे नेमिचन्द्र तो गोम्मटसार के टीकाकार है। अत: इन तीनों का तो स्पष्टतया नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती से कोई सम्बन्ध है ही। गोम्मटसार प्रणेता नेमिचन्द्र एवं द्रव्यसंग्रहकार नेमिचन्द्र की भिन्नता निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर आंकी जा सकती है - नेमिचन्द्र (गोम्मटसारादि के रचयिता) नेमिचन्द्र (द्रव्यसंग्रह के रचयिता) 1. उपाधि सिद्धान्तचक्रवर्ती उपाधि सिद्धान्तिदेव 2. गुरु अभयनन्दि, वीरनन्दि एवं गुरु नयनन्दि इन्द्रनन्दि 3. शिष्य चामुण्डराय शिष्य वसुनन्दि सिद्धान्तिदेव 4. ग्रन्थों का रचना स्थान उल्लिखित आश्रम नगर (केशोरायपाटन) में द्रव्यसंग्रह की रचना समय - दसवीं शताब्दी ई. का समय - ग्यारहवीं शताब्दी ई. का उत्तरार्द्ध एवं ग्यारहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध एवं बारहवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध नहीं पूर्वार्द्ध 6. राज्यका राज्यकाल - गंगवंशी राजा राज्यकाल - धारानरेश राजा भोजदेव राचमल्ल 7. कतिपय भाषिक प्रयोग द्रव्यसंग्रह कतिपय भाषिक प्रयोग गोम्मटसारादि एवं वृहद्रव्यसंग्रह से भिन्न से भिन्न उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट हो जाता है कि आलेख के प्रारम्भ में उल्लिखित अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526550
Book TitleArhat Vachan 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2001
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size14 MB
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