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अर्हत वचन (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर)
वर्ष - 13, अंक - 2, अप्रैल 2001, 29 - 34 वर्धमान चरितम्, वर्धमानस्वामिचरित्तम्
- डॉ. संगीता मेहता*
मुनि पद्मनन्दि प्रणीत 'वर्धमान चरितम्' नामक संस्कृत काव्य पद्यमय है। श्रीपादशास्त्री हसूरकर विरचित 'वर्धमानस्वामिचरितम्' एक संस्कृत गद्यकाव्य है। काव्य सौंदर्य की दृष्टि से उत्कृष्ट तथा तीर्थंकर महावीर के जीवनवृत्त, व्यक्तित्व एवं शिक्षाओं की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण ये दोनों काव्य अद्यतन अप्रकाशित हैं। दोनों काव्यों की पांडुलिपि के प्रथम एवं अंतिम पृष्ठों की छाया
प्रतियाँ तथा संक्षिप्त समीक्षा यहाँ प्रस्तत है। वर्धमानचरितम् (कवि पद्मनन्दि) -
मुनि पद्मनन्दि कृत 'वर्धमानचरितम्' ईस्वी सन् की 14 वीं शताब्दी का एक लघु संस्कृत काव्य है। गुणभद्राचार्य कृत उत्तर -पुराण इस काव्य का उपजीव्य है। पौराणिक इतिवृत्त का आश्रय लेकर कवि पद्मनन्दि ने तीर्थकर महावीर के पूर्व तथा वर्तमान भव का पारम्परिक शैली में काव्यात्मक वर्णन किया है। सतत प्रयासोपरान्त शोधकर्ती को इसकी दो पाइलिपियाँ प्राप्त हुई - 1. प्रथम पांडुलिपि - दिगम्बर जैन आदिनाथ मन्दिर, बूंदी (राज.) के ग्रन्थागार में इसकी एक प्रति संरक्षित है। तदनुसार वर्धमानचरितम् की पत्र संस्खा 35 है। इसका आकार 912 x5" है। 2. द्वितीय पांडुलिपि - दिगम्बर जैन शास्त्र भंडार, ईडर (अहमदाबाद) में संरक्षित है। इसकी पत्र संख्या 45 है तथा इसका आकार 972 x 5 " है।
उपर्युक्त दोनों पांडुलिपियों के वर्ण्यविषय, श्लोक संख्या, ग्रंथ नाम तथा ग्रंथकार के नाम में पूर्ण समानता है। दोनों में अन्तर केवल यह है कि बून्दी से प्राप्त पांडुलिपि में ग्रंथ का विभाजन परिच्छेदों में किया है तथा ग्रंथ के आरम्भ में 'ॐ नमः परमात्मने और अन्त में 'समाप्त' शब्द अंकित है। इसके विपरीत ईडर से प्राप्त पांडुलिपि में ग्रंथ का विभाजन सर्गों में है तथा ग्रंथ के आरम्भ में 'ॐ नम: सिद्धेभ्यः' और अन्त में 'शुभं भवतु' वाक्य अंकित है। बून्दी की पांडुलिपि में पत्र संख्या 35 है तथा अक्षर अपेक्षाकृत छोटे हैं, जबकि ईडर की पांडुलिपि में पत्र संख्या 45 है तथा अक्षर अपेक्षाकृत बड़े हैं। प्रतिलिपिकार के प्रमाद के कारण ईडर से प्राप्त पांडुलिपि में अनेक अशुद्धियाँ विद्यमान हैं, जबकि बून्दी से प्राप्त पांडुलिपि शुद्ध है।
वर्धमानचरितम् के प्रथम परिच्छेद में 359 पद्य हैं। अनुष्टुप् छंद में रचित प्रस्तुत काव्य वर्धमान महावीर के चरित से सम्बद्ध है। 'विजय निर्वाणगमन' नासक प्रथम परिच्छेद के प्रथम 6 पद्यों में मंगलाचरण किया गया है। पद्य 7 से 24 तक चरितनायक के माता - पिता का वर्णन तथा 25 से 40 पद्य तक माता के स्वप्न तथा दोहद का वर्णन है। पद्य 41 से 70 तक नायक (महावीर) के जन्म, शैशव, नामकरण आदि का वृत्त वर्णित है। पद्य संख्या 71 से 106 तक चरितनायक के वैराग्यवृत्ति, दीक्षाग्रहण, उग्रतपश्चरण एवं कैवल्य प्राप्ति का वृत्तान्त वर्णित है। 107 से 115 तक इन्द्रभूति गौतम तथा देवेन्द्र संवाद वर्णित है।
* सहायक प्राध्यापक - संस्कृत, शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, इन्दौर - 452017
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