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________________ से 'वीरशर्माभ्युदय' नाम से दो पांडुलिपियाँ प्राप्त हुई हैं। एक प्रति में कवि द्वारा रचित भगवान महावीर चरित्र संबंधी संस्कृत श्लोक तथा उसका हिन्दी अर्थ है। यह रचना दो खण्डों में है। प्रथम खण्ड में 7 सर्ग और 777 श्लोकों तथा द्वितीय (उत्तर) खण्ड में 578 श्लोकों में सम्पूर्ण कथा निबद्ध है। इसमें कवि भूरामलजी ने 'शांतिकुमार' नाम से रचना की है। दूसरी पांडुलिपि में कवि द्वारा रचित संस्कृत श्लोक, उनकी स्वोपज्ञ संस्कृत टीका तथा हिन्दी अर्थ है। इसमें 6 सर्गों में 539 श्लोक मिलते हैं। पंडित पन्नालालजी साहित्याचार्य ने इसका संस्कृत अनुवाद 'वीरेन्द्रशर्माभ्युदय' नाम से किया है। सम्प्रति ये काव्य अप्रकाशित हैं। इनकी पांडुलिपियाँ परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी के शिष्य पूज्य मुनि श्री अभयसागरजी महाराज के पास संरक्षित हैं। संस्कृत भाषा में स्वतंत्र रचनाओं के अलावा अंतर्भुक्त रूप से भी पद्यमय अन्य रचनाओं का उल्लेख मिलता है। गुणभद्राचार्य कृत 'उत्तरपुराण' ( शक संवत् 820) के 3 सर्गों (74 से 76 ) में, हेमचन्द्राचार्य कृत 'त्रिषष्टिशलाकापुरुष' का अंतिम पर्व, मेरुतुंग कृत 'महापुरुष चरित' स्वोपज्ञ टीका सहित (लगभग 1300 ई.) कृति का 5वाँ सर्ग महावीर चरित्र विषयक है। महाकवि दामनन्दि ( 11 वीं सदी) कृत 'पुराण सार संग्रह' में भगवान महावीर का चरित्र वर्णित है। स्फुट रूप में सिद्धसेन दिवाकर ने पाँच स्तुतियाँ तथा विनयप्रभ ने 'महावीर स्तवन' (सं. 1411 में) लिखा। 19वीं सदी के अंत में पंडित भागचन्दजी ने 'महावीराष्टक' आठ पद्यों में लिखा । प्राकृत काव्य - 8. महावीर चरियम् अंतिम तीर्थंकर महावीर के जीवन पर आधारित प्राकृत भाषा की रचना है। गुणचन्द्रसूरि ( देवभद्रसूरि ) ने विक्रम सम्वत् 1139 में इसकी रचना की। इसमें आठ प्रस्ताव हैं। प्रारम्भिक 4 प्रस्तावों में पूर्वभवों तथा अंतिम 4 प्रस्तावों में वर्तमान भव का वर्णन है। 9. महावीर चरियम् नेमिचन्द्र सूरि (देवेन्द्र गणि) ने सम्वत् 1141 में इसकी रचना की। यह प्राकृत भाषा में भगवान महावीर विषयक दूसरी कृति है। इसमें भगवान महावीर के 26 पूर्वभवों का भी वर्णन है । मानदेव सूरि के शिष्य देवसूरि द्वारा रचित 'महावीर चरित' का 10. महावीर चरित उल्लेख मात्र मिलता है। 11. महावीर चरित ही मिलता है। इसका अपर नाम 'दुरियराय समीर स्तोत्र' है। यह 44 गाथाओं में है। उक्त दोनों रचनाओं के बारे में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। 4 18 - Jain Education International - - अपभ्रंश काव्य 12. वीर जिणिंद चरिउ अपभ्रंश भाषा में महापुरुषों के जीवन चरित्र को लेकर महाकवि पुष्पदंत ने शक सं. 887 में 'महापुराण' की रचना की थी। यह 102 संधियों वाला काव्य है। इसमें आठ संधियों ( 95 से 102 तक) में भगवान महावीर का जीवन चरित्र निबद्ध है। डॉ. हीरालाल जैन ने इस ग्रंथ में वर्णित भगवान महावीर विषयक चरित्र का संकलन - संपादन करके 'वीर जिणिंद चरिउ' शीर्षक से स्वतंत्र काव्य का रूप दिया। यह भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली से सन् 1974 में प्रकाशित हुआ है। इसका वैशिष्ट्य यह है कि इसमें 12 संधियाँ हैं। प्रारम्भिक 3 संधियों में तीर्थंकर महावीर के पूर्वभवों से लेकर मोक्ष प्रप्ति तक का वर्णन है। चतुर्थ संधि से लेकर ग्यारहवीं संधि तक जम्बूस्वामी, चंदना, श्रेणिक एवं श्रेणिक पुत्र की योगसाधना आदि का वर्णन है। अंतिम बारहवीं संधि में तीर्थंकर महावीर के धर्मोपदेश अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 जिनवल्लभसूरि द्वारा रचित 'महावीर चरित' का भी मात्र उल्लेख For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526550
Book TitleArhat Vachan 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2001
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size14 MB
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