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________________ प्रचार का मानो ठेका ही ले लिया है। इसे शायद पंचमकाल या हुण्डावसर्पिणी का अभिशाप ही कहना होगा कि महावीर स्वामी की जन्म एवं निर्वाण दोनों भूमियों को विवादित कर दिया गया है। पच्चीस सौ सत्ताइस वर्षों पूर्व बिहार प्रान्त की जिस पावापुर नगरी से महावीर ने मोक्षपद प्राप्त किया वह आज भी जनमानस की श्रद्धा का केन्द्र है और प्रत्येक दीपावली पर वहाँ देशभर से हजारों श्रद्धालु निर्वाणलाडू चढ़ाने पहुंचते हैं जैसा शास्त्रों में वर्णन आया है बिल्कुल उसी प्रकार की शोभा से युक्त पावापुरी का सरोवर आज उपलब्ध है और उसके मध्यभाग में महावीर स्वामी के अतिशयकारी श्रीचरण विराजमान हैं फिर भी कुछ विद्वान एवं समाजनेता गोरखपुर (उ.प्र.) के निकट सठियावां ग्राम के पास एक "पावा" नामक नगर को ही महावीर की निर्वाणभूमि पावा सिद्धक्षेत्र मानकर अपने अहं की पुष्टि कर रहे हैं। इस तरह की शोध अपने तीर्थ और शास्त्रों के प्रति चलती रही तब तो सभी असली तीर्थ एवं ग्रन्थों पर प्रश्नचिन्ह लग जाएँगे तथा जैन धर्म की वास्तविकता ही विलुप्त हो जाएगी। पावापुरी के विषय में भी अनेक शास्त्रीय प्रमाण उपलब्ध हैं किन्तु यहाँ विषय को न बढ़ाते हुए केवल प्रसंगोपात्त जन्मभूमि प्रकरण को ही प्रकाशित किया गया है सो विज्ञजन स्वयं समझें एवं दूसरों को समझावें । सन्दर्भ स्थल 1. श्री यतिवृषभाचार्य, चउत्थो महाथियारो, तिलोयपण्णत्ति, पृ. 210 2. षट्खण्डागम ( नवमी पुस्तक), श्री वीरसेनाचार्य कृत धवला टीका सहित, चतुर्थ खण्ड, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर 3. उत्तरपुराण, आचार्य गुणभद्र सूरि, पर्व 74 4. हरिवंश पुराण, आचार्य जिनसेन, द्वितीय सर्ग, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली वीरजिणिंदचरिउ, अपभ्रंश भाषा, महाकवि श्री पुष्पदंत, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1974, पृष्ठ 11 12 13 6. वही 7. LIFE OF MAHAVIRA, (महावीर चरित्र), माणिक्यचन्द्र जैन, खंडवा, पृ. 14-15. 8. वही, वही, पृ. 17. 9. वही, वही, पृ. 16. 11. 12 13. - वीरजिविंदचरित, अपभ्रंश भाषा, पांचवीं संधि महाकवि श्री पुष्पदंत, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1974, पृष्ठ 60 उत्तर पुराण, पर्व 75. प्राचीन भारत, प्रो. रामशरण शर्मा, NCERT, नई दिल्ली. भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ, खंड 1975. प्राप्त 16 Jain Education International 23.3.01 - बंगाल, बिहार, उड़ीसा के तीर्थ, पं. बलभद्र जैन, हीराबाग, मुम्बई, For Private & Personal Use Only अर्हत् वचन, अप्रैल 20 www.jainelibrary.org
SR No.526550
Book TitleArhat Vachan 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2001
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size14 MB
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