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________________ • राजा के दोष राज्य का सबसे बड़ा प्रमुख व्यक्ति राजा होता है। उसे सर्वगुण सम्पन्न होना चाहिये । राजा में पाये जाने वाले गुणों को जानने के बाद राजा में पाये जाने वाले दोष भी जानना आवश्यक है। वे कौन कौन से दोष हैं जिनके होने पर राजा को अपना पद ही नहीं बल्कि राज्य और जीवन से भी हाथ धोना पड़ते हैं। पद्मपुराण में रविषेणाचार्य ने राजा के दोषों का निरूपण करते हुए सीता द्वारा कहलाया है कि यह विद्याधरों का राजा ही जहाँ अमर्यादा का आचरण कर रहा है वहाँ दूसरा कौन शरण हो सकता है। 42 विभीषण द्वारा समझाने पर भी राजा उसका अनादर करता है। विभीषण कहते हैं कि 'हे स्वामिन! हे परमेश्वर ! परस्त्री के कारण आपकी यह निर्मल कीर्ति संध्याकालीन मेघ की रेखा के समान क्षणभर में नष्ट न हो जाये इसलिये शीघ्र ही सीता राम को लौटा दीजिये।' विभीषण की सभी अवहेलना करते हैं। रावण कहते हैं कि अग्नि के समान अपने आश्रय का अहित करने में तत्पर ऐसा दुष्ट शीघ्र ही मेरे नगर से निकल जाये। राजा रावण नीतिवान होते हुए भी एक परस्त्री के प्रति गलत विचार के कारण राज्य से नहीं, अपने जीवन से भी हाथ धो बैठता है। आज तक उसका यह दोष दोहराया जाता है। मानव जीवन के इतिहास में उसके इस कृत्य को घृणित दृष्टि से आंका जाता है। 43 आदि के पुराण 32 - राजाओं में प्राय: निम्नांकित दोष पाये जाते हैं अनुसार ■ सदा तृष्णा से युक्त होना ■ मूर्ख मनुष्यों से घिरे रहना > पूज्यजनों, गुरुजनों का तिरस्कार करना ■ अपनी जबरदस्ती दिखलाना ■ अपने गुण तथा दूसरों के दोषों को प्रकट करना 44 ■ अधिक कर लेना ■ अस्थिर प्रकृति का होना ■ दूसरों के अपमान से मलिन हुई विभूति को लेना ■ कठिनाई से दर्शन का होना ■ पुत्र का कुपुत्र होना सहायक मित्र तथा दुर्ग आदि आधारों से रहित होना ■ चंचल, निर्दय, असहनशील और द्वेषी होना ■ बुरे लागों की संगति करने वाला ■ विषय भोग, खोटे मार्ग में चलने वाला ■ बिना काम के प्रत्येक कार्य में आगे आना वाला - उत्तर पुराण में राजा के दोष बताते हुए गुणभद्राचार्य ने कथन किया है कि दोषी या अन्यायी राजा सबको संताप देने वाला, कठोर टेक्स लगाने वाला, क्रूर ( अनवस्थित), कभी संतुष्ट और कभी असंतुष्ट रहने वाला तथा पृथ्वी मंडल को नष्ट करने वाला होता है। 45 इसके फलस्वरूप अपना देश, धन, बल, रानी सब हार जाता है। अर्हत् वचन, जुलाई 2000
SR No.526547
Book TitleArhat Vachan 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size17 MB
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