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________________ संदर्भ ग्रंथ - 1. ऋग्वेद, 10,166 *2. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग - 1, सागर, 1974, पृ. 15 3. आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्या प्रज्ञप्ति, ज्ञातृधर्मकथा, उपासकाध्यांनांग, अन्त:कृद्दग, अनुत्तरोपवादिकांग, प्रश्नव्याकरणांग, विपाकसूत्र, दृष्टिवादांग। 4. स्थानांगसूत्र स्थान 4 उद्देश्य 1 - दृष्टयो दर्शनानि नया वा अच्यन्ते अभिधीयन्ते पतन्ति वा अवरन्तियगासौ द्रष्टिवादो दृष्टिपातो वा। प्रवचन पुरूषस्य द्वादशाने। 5. जैन आयुर्वेद साहित्य का इतिहास - डॉ. राजेन्द्र भटनागर, 1984, उदयपुर पृ. 11 6. स्थानांगसूत्र स्थान 4, 404, विपाकसूत्र 7, पृ. 41, पद्मानन्दमहाकाव्य 6.17 पर उद्धृत, स्थानांङ्गवृत्ति पृ. 428 7. सर्वोषधीरसवीर्यविपाक ज्ञानदीपकम्। अप्यायुर्वेद्यष्टाङ्गमध्यैष्टाडक ष्टमेवस:॥ त्रिषष्टिशलाकाचारित्र 2.3.30 • 8. द्वयाश्रयकाव्य 16.95। 9. कषायपाहुड, जयधवला टीका, मथुरा, पेज्जदोसविहत्ती, गाथा 1, 113 10. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास - डॉ. मोहनलाल जैन - भाग-2, वाराणसी, पृ. 51-52 11. जैन आयुर्वेद साहित्य का इतिहास - डॉ. राजेन्द्र भटनागर प्र. 13 12. कल्याणकारक - उग्रादित्याचार्यकृत, सम्पा. पं. व्ही.पी. शास्त्री, सोलापुर, 1940 13. वही पृ. 25-26 14. वही पृ. 1 - 10 15. वही पृ. 1-9/10 16. सारणी लेख के अंत में संलग्न है। 17. कल्याणकारक 20/85 18. वही 20/85 19. आयुर्वेद के विषय में जैन दृष्टिकोण और जैनाचार्यों का योगदान - आचार्य राजकुमार जैन, आ. रत्न श्री देशभूषणजी महाराज, अभिनन्दन ग्रंथ, दिल्ली, 1987, पृ. 169 - 170 20. सुश्रुत संहिता सूत्र स्थान - अ. 4/7 21. पद्मानन्दमहाकाव्य 6.25.93 22. (ए) पद्मा 6.25.94 . (बी) सोऽभूत तथाऽप्यौषधमग्रहीन्न देहानपेक्षाहि मुमुक्षव: स्युः। पद्मा 6.37 23. प्रत्यङ्गमभ्यङ्गनिषङ्गरोग घाताय तैलं व्यलसत् तदन्तः। पदमा 7.751 24. पद्माकर महाकाव्य - 6.77, 6.76, 6.85, 6.80, 6.68, 6.83, 6.89, 6.79, 6.82, 6.86, 6.88, 6.93 25. हम्मीरमहाकाव्य 4.71 यशोधरचरित 2.701 26. शोध प्रबन्ध के अध्याय 4 व 5 में विस्तृत वर्णन 27. जगदीशचन्द्र जैन ने अपनी पुस्तक "जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज' में स्वतंत्र अध्याय के रूप में जैन आयुर्वेद साहित्य का वर्णन किया है। 28. कल्याणकारक, उग्रदित्याचार्य कृत, वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, सोलापुर, 1940, 1/9-10 29. आयुर्वेद का वृहद इतिहास, अत्रिदेव विद्यालंकार, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, पृ. 461. प्राप्त : 4.4.99 अर्हत् वचन, अप्रैल 2000 27
SR No.526547
Book TitleArhat Vachan 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size17 MB
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