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समीक्षा अराकसोपान ___सराक सोपान - एक विशेष मिशन को समर्पित
सराक सोपान, वर्ष - 1, अंक - 1 (प्रवेशांक), अप्रैल 2000 सम्पादक - सुभाषचन्द्र जैन, ज्ञान भवन, 150 खन्दक बाजार, मेरठ-2 प्रबन्ध सम्पादक - पंकजकुमार जैन, प्रथम तल, 247, देहली रोड, मेरठ-2 प्रकाशक - सोसायटी फार वेलफेअर एण्ड डेवलपमेन्ट, मेरठ वार्षिक शुल्क - रु. 100/- आजीवन शुल्क - रु. 1100/
समीक्षक - डॉ. अनुपम जैन, इन्दौर । भगवान पार्श्वनाथ के अनन्य भक्त तथा युगों-युगों से जैन धर्म और संस्कृति से जुड़े हुए, भगवान महावीर के पश्चात् के इन ढाई हजार वर्षों के अंतराल में आतताईयों के हाथों आर्थिक रूप से बर्बाद किये जाने पर भी अपने धर्म, संस्कृति एवं संस्कारों को बचाये रखने वाले सराक बंधु वर्तमान में बिहार, बंगाल और उड़ीसा के दुर्गम क्षेत्रों में आदिवासियों के समान, जीवन - यापन करने को विवश हैं। पूर्णत: अहिंसक एवं शाकाहारी जीवन व्यतीत करने वाले जैन संस्कारों से ओत-प्रोत इन सराक बंधुओं में जैन धर्म का व्यापक प्रचार करने, उनके आर्थिक एवं सामाजिक पुनरूत्थान में महती भूमिका का निर्वाह करने वाले युवा उपाध्याय मुनि श्री ज्ञानसागरजी महाराज की प्रेरणा से सराक गतिविधियों का परिचय देने हेतु पत्रिका 'सराक सोपान' का प्रवेशांक महावीर जयंती विशेषांक के रूप में हमारे सम्मुख है। इसी उद्देश्य से पूर्व में 'दिगम्बर जैन सराक बुलेटिन' एवं 'सराक ज्योति' का प्रकाशन किया गया था। तकनीकी कारणों से यह नये नाम से प्रकाशित की गई है। जैन पत्र-पत्रिकाओं के परिवार में 'सराक सोपान' का हम स्वागत करते हैं एवं आशा करते हैं कि पत्रिकाओं की भीड़ में यह अपनी अलग पहचान बनायेगी। इसके लिये जरूरी है कि पत्रिका के संपादकगण सराक क्षेत्र के अध्ययन में रत विशेषज्ञों, सराक बंधुओं के बीच से ही लेखन प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तियों से सम्पर्क कर उनसे मौलिक सामग्री प्राप्त करें। सराक बंधुओं के पारंपरिक ज्ञान, उनके अनुभव, किंवदन्तियाँ, लोकोक्तियाँ, उनके रीति-रिवाजों, योहारो, परम्पराओं को प्रमुखता से प्रकाशित किया जाना चाहिये। सराक क्षेत्रों के विकास के लिये सामाजिक एवं शासकीय प्रयासों का मूल्यांकन, प्रभाव और सांख्यिकीय विश्लेषण भी रोचक होगा वरना यह भी भीड़ का एक हिस्सा बनकर रह जायेगी। पत्रिका की सफलता की हम कामना करते हैं तथा सुन्दर प्रवेशांक की प्रस्तुति हेतु संपादक एवं प्रकाशक को साधुवाद। पत्रिका पठनीय है।
आचार्य श्री कनकनन्दीजी द्वारा प्रणीत साहित्य इन्टरनेट पर
आचार्य श्री कनकनंदी द्वारा प्रणीत विपुल जैन वैज्ञानिक साहित्य शीघ्र ही धर्म - दर्शन विज्ञान शोध संस्थान के तत्वावधान में इन्टरनेट पर उपलब्ध किया जाने । कार्य में सहयोग देने के इच्छुक बंधु निम्न पते पर संपर्क करें -
डॉ. राजमल जैन एवं श्रीमती रतनमाला जैन 4-5, आदर्श कालोनी, पुलाँ उदयपुर - 313 001 (राज.)
अर्हत् वचन, अप्रैल 2000
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