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________________ करवायी गई थी यह उल्लेख है एवं मध्य में उनका लांछन वृषभ का आलेखन है। लेख का वाचन इस प्रकार है - (1) संवत् 1128 श्रीम गोल्ला प्रव्वार्थ ये सावु विवी तत्य पुत्र स्त्रीतं इस्तस्याणि पुत्रणो ___ विदं प्रणमति नित्य माघ दवं॥ 4. सं. क्र.-396 - यह प्रतिमा जगत सागर से प्राप्त हुई हैं, कायोत्सर्ग मुद्रा में निर्मित तीर्थंकर की दोनों भुजा टूटी है। ऋषभनाथ के सिर पर कुन्तलित केश, सादा प्रभामण्डल श्रीवत्स से अलंकृत है। दोनों पार्श्व में चांवरधारी अंकित है। पादपीठ पर ऋषभनाथ का ध्वज लांछन नन्दी (वृषभ) की रेखांकित अंकित है। काले पत्थर पर निर्मित प्रतिमा 110X405X24 से.मी. आकार है। 5. सं. क्र. - 409 - तीर्थंकर ऋषभनाथ का कमर से नीचे का भाग है। अलंकृत पादपीठ पर ऋषभनाथ का ध्वज लांछन वृषभ अंकित है। पादपीठ के नीचे विपरीत दिशा में मुख किये सिंह चक्र का अंकन हैं। पार्श्व में यक्ष गोमुख एवं यक्षी चक्रेश्वरी की लघु आकृतियों को उत्कीर्ण किया गया है। बलुआ पत्थर पर निर्मित प्रतिमा का आकार 42X54X20 से.मी. हैं। 6. सं. क्र. - 418 - पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में अंकित तीर्थंकर का सिर एवं भुजा टूटी हुई हैं। बायीं आधी भुजा भी टूटी हुई, जो प्रतिमा से अलग हो गयी है। वक्ष पर श्रीवत्स का अंकन है। दांयी ओर चाँवरधारी खड़ा हैं, बांयी ओर का चाँवरधारी खण्डित है। पादपीठ के आसन पर तीर्थंकर ऋषभनाथ का ध्वज लांछन वृषभ दोनों और विपरीत दिशा में मुख किये सिंह और पूजक अंकित है। दायीं और गोमुख यक्ष खड़ा है, जो अपने दायें हाथ में सर्प लिये है, पत्थर के क्षरण के कारण प्रतिमा की कलात्मकता समाप्त हो गयी है। बलुआ पत्थर पर निर्मित प्रतिमा का आकार 30X28 से.मी. है। पादपीठ पर नीचे एक पंक्ति में अस्पष्ट लेख उत्कीर्ण है, पठनीय शब्दों का वाचन इस प्रकार हैं - करन.......................तलाव........................वहीला। 7. सं. क्र. - 1815 - तीर्थंकर ऋषभनाथ के कमर से नीचे का भाग टूटा हुआ है। दोनों भुजा व चेहरा भग्न है। दोनों पार्श्व में खड़े चाँवर धारियों का कमर से नीचे का भाग भग्न है। तीर्थकर कुन्तलित केश, कंधे तक फैली लम्बी जटाओं से अलंकृत है। चाँवरधारियों के ऊपर एक - एक कायोत्सर्ग में जिन प्रतिमा अंकित है। वितान में मालाधारी विद्याधर एवं अभिषेक करते हये गजों का आलेखन है। लाल बलुआ पत्थर पर निर्मित प्रतिमा का आकार 50X48X25 से.मी. है। 8. सं. क्र. 581 - यह प्रथम तीर्थकर आदिनाथ प्रतिमा का दाया भाग है, जिस पर खण्डित सिंह एवं पार्श्व में गोमुख यक्ष का अंकन है, जो गोमुखी, हार, श्रीवत्स से अलंकृत है। बलुआ पत्थर पर निर्मित प्रतिमा का आकार 15X145X13 से.मी. है। उपरोक्त प्रतिमाओं के विवरण से स्पष्ट होता है कि मऊ - सहानिया चन्देल काल में जैन धर्म का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा होगा। यहाँ से प्राप्त अनेक अभिलिखित प्रतिमाओं पर उल्लेख मिलता है कि इन्हें गोल्ला कुल के लोगों द्वारा स्थापित कराया गया था। प्राप्त - 31.1.2000 * संग्रहाध्यक्ष - केन्द्रीय संग्रहालय, ए. बी. रोड़, इन्दौर 70 अर्हत् वचन, अप्रैल 2000
SR No.526546
Book TitleArhat Vachan 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size6 MB
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