________________
अत्यन्त गद्गद् हो उठा और वह राजा से इतना ही कह सका कि 'हे स्वामिन ! आज आपका यह दास धन्य हो गया । '
कमलसिंह ने गोपाचल दुर्ग पर उरवाही द्वार के पास 57 फुट ऊँची आदिनाथ की मूर्ति का निर्माण कराया। उसकी प्रतिष्ठा का कार्य रइधू ने कराया। 3
जयेन्द्रगंज का प्राचीन नाम जयेन्द्रगंज नहीं जिनेन्द्रगंज था, स्वर्णरेखा नदी के आसपास का यह क्षेत्र जहाँ जैन मुनि तथा सिंह का विचरण क्षेत्र था, जो पूर्व में काफी पवित्र माना जाता था, लेकिन समय की मार ने सभी स्मृति चिन्ह मिटा दिये हैं तथा यह क्षेत्र जिनेन्द्रगंज से जयेन्द्रगंज में परिवर्तित हो गया। प्रो. रघुनाथसिंह भदौरिया ने इतिहास के पन्नों को उलटते हुए उक्त जानकारी देते हुए बताया कि 'वैसे तो ग्वालियर जैन धर्म एवं परम्परा का मध्यकाल में प्रकाश स्तम्भ रहा है, जो कुछ भी मध्य क्षेत्र यानी केन्द्रीय भारत में प्राचीन निर्माण दिखता है, उसका श्रेय ग्वालियर के तोमर राजपूत राजाओं को है। तोमर राजाओं के काल में लगभग आधे काल तक महाराजा डूंगरेन्द्रसिंह तोमर से कीर्तिसिंह तक जैन धर्म राज धर्म घोषित था। ग्वालियर किले के उरवाई क्षेत्र में लगभग साढ़े चार हजार जैन मूर्तियां थीं जो 1878-79 ( सरकारी रिकार्ड से यह 1868-69 होना प्रतीत होता है) में सिंधिया के शासन में एक अंग्रेज इंजीनियर द्वारा सड़क निर्माण में नष्ट कर दी गईं थी । केवल किले के पत्थरों में उकेरी गई प्रतिमाएँ ही शेष बची हैं। इसी तरह किले के पूवी पार्श्व की प्रतिमाएँ और गुफाएँ भी इसी काल में बनाई गई थीं। मालवा और बुन्देलखण्ड तक और मथुरा क्षेत्र तक इस काल में जैन धर्म का राजपूत राजाओं ने खूब प्रचार प्रसार किया, यद्यपि यह शोध का विषय | श्री भदौरिया ने बताया कि डूंगरेन्द्रसिंह तोमर को डोंगरशाह एवं कीर्तिसिंह को तत्कालीन जैन साहित्य में कीर्ति शाह नाम से सम्बोधित किया गया है। पाँच सौ वर्ष पुरानी बात है, इस कारण इस पर बहुत धूल चढ़ चुकी है। ' 4
दरअसल जैनियों की निहायत मशहूर यादगार सिर्फ जैन मूर्तियों के पाँच मजमुए (समूह) हैं। यह खास पहाड़ी के ड़ाल में काटी गई हैं और यह सब तोमर खानदान की हुकूमत के जमाने में सन् 1440 ई. से सन् 1473 ई. तक तैयार की गई थी। कुछ मूर्तियां तो बड़ी कद्दावर आकार की हैं। उरवाही दरवाजा के पास एक मजमुए (समूह) की एक मूर्ति 57 फुट बुलन्द है । बाबर ने इस मूर्ति के जिक्र में लिखा है कि मैंने इन तमाम मूर्तियों को तोड़ने का हुक्म दे दिया था। इनमें से सिर्फ वो ही मूर्तियां किसी कद्र तोड़ डाली गई थीं जिन तक आसानी से पहुँच हो सकती थीं। बाद को कुछ किले के मुसलमान हाकिमों के जमाने में गारत कर दी गई और बहुत सी महकमा पब्लिक वरक्स वालों ने सन् 1869 ई. में पक्की सड़क बनाने के लिये तोड़ डालीं ।
प्रो. रघुनाथसिंह भदौरिया से हमारी रूबरू बातचीत में उन्होंने बताया कि महाराजा डूंगरसिंह एवं कीर्तिसिंह दोनों ने जिन दीक्षा ली थी। ग्वालियर राज्य में जैन धर्म राज धर्म घोषित होने के परिणाम स्वरूप यहाँ के भदौरिया, तोमर एवं कुछवाह राजपूतों में मांस और शराब का प्रचलन कतई बन्द था जो अब से पचास वर्ष तक देखा गया।
अब तथ्य आपके सामने हैं, कथ्य आपको बढ़ाना है, सत्य प्रगटाना है।
सन्दर्भ
1. हरिहर निवास द्विवेदी, मानकुतूहल ।
2. अर्हत् वचन ( इन्दौर), जनवरी 1993.
3. जैन धर्म राज धर्म, दैनिक भास्कर (ग्वालियर), 4.12.97.
4. गजेटियर - रियासत ग्वालियर, 1908, जिल्द पहली )
-
-
प्राप्त
अर्हत् वचन,
- 10.4.98
अप्रैल 2000
51