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है।
प्रत्येक पद का प्रथम महामंत्र के पांच पद,
महामंत्र के अक्षर संख्याओं में एक से पाँच के अंक हैं। एवं अंतिम अंक भी पांच ही है। पांच की संख्या में पांच तत्व, पंच परमेष्ठी, पंच तंत्री वीणा, पांच प्रकार की वायु, पांच देवी - देवताओं आदि की जानकारी मिलती है।
तीन का अंक द्वितीय एवं पंचम पद के अतिरिक्त अन्य पदों की संख्याओं में नहीं है। सबसे कम एवं सबसे अधिक संख्या वाले इन पदों के अंकों द्वारा ध्वनि - शक्ति से कोमलता एवं मधुरता संबंधी जानकारी मिलती है, उस पर आगे प्रकाश डाला जा रहा
है।
प्रत्येक अक्षर में तीन प्रकार की ध्वनियाँ पायी जाती हैं। उदात्त, अनुदात्त एवं स्वरित ध्वनियों के आधार पर उन ध्वनियों के गुण, स्वभाव, प्रमाणादि की जानकारी मिलती है। उन ध्वनियों का संख्याओं से भी सम्बन्ध है। कोमल ध्वनि का जब प्रयोग किया जाता है तब उक्त ध्वनि के अन्तराल में संवादात्मक ध्वनि के सहयोग से मधुर ध्वनि ( स्वंयभू - नाद ) उत्पन्न होती है। उक्त ध्वनि को योगी ही सुनते जिसे अनाहत नाद कहा जाता है। अक्षरांक विधि के आधार पर महामंत्र का द्वितीय पद विशेष महत्वपूर्ण है । पद की संख्या 55345 का योग 22 है।
नाद विशेष अर्थात् समुधुर नाद की बाईस ध्वनियाँ मानव के शरीर (कायपिण्ड) में बाईस नाड़ियों में स्थित है जिन्हें श्रुति कहते हैं। उन श्रुतियों को तीन भागों में विभाजित कर उन पर संगीत के सप्त स्वरों को मनीषियों ने स्थापित किया है। संगीत कला का प्रभाव श्रुतियों के स्वभावानुसार होता है।
महामंत्र के प्रत्येक पद के अक्षरों को प्रभावित करने का कार्य श्रुति करती है। नाद का यह सूक्ष्म स्वरूप अनाहत नाद से संबंध स्थापित कराता है। उक्त पद में तीन का अंक मध्य स्थान पर । यह अंक तीन लोक, संगीत के तीन ग्राम ( षड़ज, मध्यम, गंधार ग्राम), तीन लय, तीन नाड़ियाँ ( इड़ा, पिंगला, सुषुप्ता) आदि की जानकारी कराता है। चार के अंक से चार गति, चार दिशाएँ, मूलाधार कमलदल की चार पंखुड़ियां, उस पर स्थित चार अक्षर, चार मात्राएँ आदि की जानकारी मिलती है।
णमो सिद्धाणं में 'स' और 'ध' दोनों अक्षर संगीत के स्वर भी हैं। सा ( षड़ज) की चार श्रुतियां एवं ध ( धैवत ) की तीन श्रुतियां हैं। तीन एवं चार के अंक उक्त पद में भी हैं। षड्ज स्वर अचल है, उसी प्रकार सिद्ध (साधक) भी अचल है। सा का स्थान छंदोवती श्रुति पर एवं ध का स्थान रम्या नामक श्रुति पर है। छंदोवती का अर्थ है छंदवद्ध, कवित्रि एवं छेदन करने वाली तथा रम्या का अर्थ है सुन्दर महामंत्र छंदवद्ध, सुन्दर एवं कुण्डलिनी को जाग्रत करने वाला है। छंदोवती का स्थान मानव शरीर में नाभि है। इस श्रुति से पूर्व तीव्रा, कुमुद्रती, मन्दा नामक तीन श्रुतियां षडज स्वर से संबंधित हैं। तीव्रा का संबंध 'मूलाधार चक्र' से है। छंदोवती की ध्वनि षड़ज स्वर जो औंकार स्वरूप 'ॐ' है, मन्दा तथा कुमुद्रनी की ध्वनियों को छेदन करती हुई तीव्रा को प्रभावित करती है। तीव्रा का अर्थ तेज एवं प्रकाश है। अत: तीव्रा के तेज प्रकाश से कुण्डलिनी जाग्रत होती है।
णमोकार महामंत्र में 'णमो' शब्द का उच्चारण ओंकार स्वरूप है। 'र' हृदय तंत्री
अप्रैल 2000
अर्हत् वचन,
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