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________________ PAGE No. 55 PRABUDHHA JIVAN MARCH 2012 W RATE | दरिसण दुरलभ ज्ञानगुण, चारित्र तप सुविच्यार।। सिद्धचक्र ए सेवता, पामी जई भवपार ॥५॥ इह भविं परभविं एहथी, सुख संपद सुविसाल। रोग सोग रौरव टलई, जिम नरपति श्रीपाल ।।५।। पूछई श्रेणिकराय प्रभु, ते कुण पुण्य पवित्र ।। इंद्रभूति तव उपदिसई, श्री श्रीपाल चरित्र ।।७।। W M waWAawwwNwAAMANAMAMAN अष्ट कमल दल इणि परिं, तनि मनि सेवतां, सारई आसो सुदि माहि मांडिइं, आयंबिल करी निरमला, विधि पूरवक करीं धोतियां, आठ प्रकारनी, कीजई थई निरमल भूमि संथारीइं, जपिई पद एकेकनी, पपwwwपराम्पसलमwwwwwww यंत्र सकल सिरताज रे। निरमल वंछित काज रे ।। चेतन०।१५।। 'सातमथी तप एह रे। नव आराधौ गुणगेह रे। चेतन० ॥१७॥ जिन पूजौ त्रिण्य काल रे। पूजा 'उजमाल रे।। चेतन० ॥१८ थरिह सील जगीस रे।। नौकरवाली वीस रे॥चेतन०॥१९॥ BommentmemocGDIDIOB515005000NMMONOMMENT ANNA ARoadsakARAMANANJAYAMVARAVACAANEMA इम नवपद थुणतौं थको, पाम्यौं पूरण आऊखई, राणी मयणा प्रमुख सवि, आउखयइं तिहां उपना, नरभव अंतर सरग ते, नवमइं भवि सिव पामस्यइं, ते निसुणी श्रेणिक कहई, अहो नवपद महिमा वडो. ध्यान श्रीपाल। नवमौ कलप विसाल ॥2॥ माता पणि सुभ ध्यानि । सुख भोगवई विमानि ॥२॥ च्यार यार लही सरव।। 'गौतम कहई निगरव ॥३॥ 'नवपद उलसित भावि।। ए छहं भव जल नावि॥४॥ STER AllIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIII TITHILITERTILITHILITITUTRITITIHATTITUHERITTITUTERUIITTERTILITHUTTITUTITTEELHI
SR No.525997
Book TitlePrabuddha Jivan 2012 Year 59 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanvant Shah
PublisherMumbai Jain Yuvak Sangh
Publication Year2012
Total Pages528
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Prabuddha Jivan, & India
File Size33 MB
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