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________________ પ્રબુદ્ધ જૈન, त०१-७-33 हिन्दी विभाग. साहित्यरत्न-दरबारीलालजी न्यायतीर्थ का ही सांप्रदायिक ऐक्य करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण विवेचन हुवा था । संघ के सेक्रेटरी श्रीयुत् माणिकलालजी भटेवराने संघ को श्री महाराष्ट्र जैन युवक संघ आगामी वर्ष के कार्य की रूपरेखा बतलाई थी। इसी वक्त और मंचरनिवासी श्रीमान राजमलजी साहेब समदडियाजी ने सामाजिक आन्दोलन. रु. १५ की और श्रीमान जुगराजजी साहेब घोडनदीवाले ने हमारी जैन जातिको पुनर्सङ्गठित हुए आज लगभग रु. ५ की संघ को मदत दी है। २१५८ वर्ष व्यतीत हो गये। भगवान महावीर ने किस -मोसर-पत्रिका प्रचार और उसका मभावप्रकार हमारे समाज को संगठित किया, उसको अहिंसा का संघ ने मोसर (प्रेत-भोज) के बारे में हरएक दृष्टि से पाठ पढ़ाया तथा अपने दिव्य उपदेशोंदारा हमें पतितावस्था पत्रिकाए छपवाई हैं, और इस धर्मविरुद्ध कुप्रथा को नष्ट से उबारा ये बातें न्यूनाधिकरूपमें सचको विदित है। करने के लिए महाराष्ट्र में बृहद आन्दोलन चलाया है। इस किन्तु आज उसी बीर के अनुगामियों में फट और आन्दोलन से श्री नासिक जिल्हा ओसवाल सभा के अधिकलह की मेरी बज रही है। श्वेताम्बर और दिगम्बर, बाइस वेशन में ४७ वर्ष से कम उमर की व्यक्ति का मोसर न करने टोला और तेरा पन्थी इत्यादि के संघर्ष की ओट में जैन का प्रस्ताव पास हुआ है, और इस मोसर के प्रथा को जाति एक गहन आवर्तकी और अग्रसर हो रही है कि यदि निदनीय ठराया है। इस खडखडाती हुई समाज का हाथ पकड कर कूल निकट मासिक जिल्हे में येवलें गांव में तारीख १७-१८ जून नहीं पहुँचा दी जायगी तो संसार में जैन जाति का नाम १९ १९३३ को कै. देविचंदजी साहाब तातेड जिन को उमर निशान केवल इतिहास के पृष्टों का ही विषय रह जायगा। ७६-८० वर्ष से जादा थी उनका मोसर हुवा है। किन्तु देश के नवयुवकों का ध्यान इस और अधिक आकर्षित १ र मृत्यु-भोज के बारे में कोई शर्त उम्र की नहीं होनी चाहिये होता है, अतः उनके हृदय में सत्यानाशी फूट और रूदियों कि इतनी उम्र वाले का भोज न हो और इतनी उम्र वाले और समाज की शक्ति का नाश करने वाली कुरीतियों के प्रति . का हो, क्यों कि है तो हर हालत में मृत्यु समय का खाना घोर विरोधी भाव पाये जाते हैं। ही। सो इस लिये इस समय पर संघ ने मृत्यु-भोज विषयक " ऐसी अवस्था को देख कर नासिक के जैन नवयुवकों ने पत्रिकाओका जोर से प्रचार किया। उसके प्रभाव से बहुत जाति के पारस्परिक बैमनस्य के विरोध के लिए, समाज के से सजनोंने उपरोक्त मृत्यु-भोज में भाग नहीं लिया था। समान उपरा यथेष्ट उन्नति के लिए, नवयुवकों में समाज और देशको सेवा इसी ही तरह से यदि मृत्यु-भोज में भाग न लेनेवालों की के भाव भरने के लिए तारीख १४ मइ १९३३ को नासिक नामक बहु संख्या हो जावे तो ऐसी कुप्रथा बन्द होने में बहुत में श्री महाराष्ट्र जैन युवक संघ को जन्म दिया. यह संध। देरी न लगेगी। मृत्यु-भोज में भाग न लेने वाले की बहु संख्या करके तिनों सम्प्रदायों के लिये तथा समस्त महाराष्ट्र के लिये है।। काय हा अपनी संगठन शक्तिद्वारा ऐसे घृणित तथा नीच प्रथा को आधुनिक युग की आवश्यकताओं के अनुसार इसका सर्वथा बन्द कर देने के लिए संघ ने प्रतिज्ञा-पत्रिका उपचा मुख्य उद्देश सामाजिक कुरीतियों का नाश, जैन जाति का कर प्रतिज्ञा-पत्रिकाओं पर हस्ताक्षर कराने का काम बडे संगठन और समाज सेवा है। संघ अपने समाज में प्रचलित जोर से चलाया है। कुरीतियों का नाश करने का प्रयत्न करता है, जैसे ओसर अन्त में हम समाज के प्रत्येक नवयुवक से प्रार्थना मोसर, बालविवाह वृद्धविवाह इत्यादि का घोर विरोध करना. ऐसे कार्यो में संघ ने आज्ञातीत सफलता भी प्राप्त की। करते है कि वह अपनी शक्ति और क्षमता के अनुसार इस युवकों में जागृति फैलाने के उदेश से संघ ने समय समय पर संघ के हरएक कार्य में सहयोग दे संस्थाओं के कार्यकर्तागण समाज के नेताओं और विदानाद्वारा भाषण दिए जाने का अपनी लेखनो से, पत्रकार अपने पत्रों में इस विषय पर चर्चा प्रयत्न किया है। करके तथा जनता अपना सहयोग और शुभाशीष दे। हमे - संघ के अध्यक्ष श्रीमान् शेठ राजमलजी लखीचंदजी पूर्ण आशा है कि महाराष्ट्र का हरएक जैन, व्यक्ति इस ललवाणीजी का 'जैन युवक' इस विषय पर तारीख २४ संघ का सभासद बने और संघ के कार्य में सहयोग दे। मइ १९३३ को भाषण हुया। उपरोक समय पर श्रीमान् -माणिकलाल भटेवरा-मंत्री. ૫ પબ મનસુખલાશ હીરાલાલ જાજને જૈન ભાસ્કરેજ પ્રિન્ટીંગ પ્રેસ, ધનજી ટ્રોઢ, મુછાઈ નં. ૩ માં છાપ્યું છે. અને ગેકદાસ મગનલાંશ ચાહે જૈન યુવક સંધ’ માટે ૨૬-૬, ધનજી સ્ટ્રીટ, મુંબઈ ૩, માથી પ્રગટ કર્યું છે,
SR No.525800
Book TitlePrabuddha Jivan - Prabuddha Jain 1933 07 Year 02 Ank 35 to 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakant V Sutaria
PublisherMumbai Jain Yuvak Sangh
Publication Year1933
Total Pages32
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Prabuddha Jivan, & India
File Size3 MB
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