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________________ viii Acharya Padmasagarsuri श्री युरोप जैन समाज खदिर्वाह- शुभेच्छाखो ॐ अर्हम्नमा - लीस्टर, (3.के.) योग्य धर्म लाभा आपके वहां पर होने वाली जिन मंदिर की मंगल प्रतिष्ठामहोत्सव के शुभ अवसर पर मेरी हार्दिक जमेच्या साथ आशीवच । हैदराबाद (आंध्र) ५-४-८८ जिन शासन देव की कृपासे प्रतिष्ठां का से शासन प्रभावना पूर्ण बने यही भगन्तु बीतरागा: श्री नाम समुहसद्गुरुभ्यो नमः युरोप जैन समाज के माध्यम से परमात्मा महावीर का संदेश "अहिंसा- अपरिहार अनेकांत का विश्व के हर क्षेत्र तक - हर व्यक्ति तक पहुंचे यहाँ मेरी भावना है। प्रतिष्ठा के मंगल का कार्य की हार्दिक अनुमोदना के साथ में कार्य सुंदररूप कां 95/4577 करता जैन समाज यूरोप लेस्टर डॉ. नहभाई शाह, योग्य धर्मलाभ Jain Education International 2010_03 शुभेच्छुक:पद्मकार विजय इन्द्रदिन सूरि पाश्चात्य संस्कृति आर्थिक समृद्धि के शिखर पर है, किन्तु अध्यात्मिक समृद्धि का अभाव था। परम सौभाग्य है कि पाश्चात्य संकृति को आध्यात्मिक, वैभव प्रदान करने का आयोजन किया जा रहा है। इस भगीरथ कार्य के लिए मेरा शर्दिक आशीर्वाद है। , Date 30-6-88 भगवान महावीर ने समझ मानव को अहिंसा सत्य अस्तेय, ब्रहमचर्य और अवस्थित का संदेश दिया। वर्तमान में भगवान महाबीर के अहिंसा, अपरिग्रह, और अनेकान्त के सिद्धान्तों पर चलकर ही मानव शान्ति का अनुभव कर सकता है। पूरा विश्व तप्त, अशान्त और अमानविय दिशा में अनुसार हो रहा है। विज्ञान की प्रगति विना को आमंत्रित कर रही है। तत्प समाप्त विशद को भगवान महावीर के सन्देशों पर तिष्टि से विचार करना होगा। जैन धर्म के पास 'शान्ति की ओर से जाने का प्रयोगात्मक कार्यक्रम है। जैन समाज के अग्रणी पेस्टर (इंग्लेण्ड) में 'भगवान महावीर के पावन सन्देशों को पश्चिमी देशों तक पहुंचाने का अनू‌ता कार्य कर रहे हैं। इसके दूरगामी परिणाम होंगे। आनेवाली युवापेटी इससे लाभान्वित होगी । दयाका दলভ परमपूज्य १०८ आचार्य विद्यासागरजी महाराज का मंगल आशीर्वाद " Do not speak, also do not sleep. But do thy duty with honesty. " नही प्रार्थना वीर से अनुमय से करजोर हरी भरी दिखती रहे, धरती चारों ओर ॥" श्री सिद्धि सूरीश्वरजी गुरुभ्यो नमः ॥1 श्री मेलमेटर, वेस्टर, सना " आचार्य विद्यासागर, % वीशानीमानी शा --ઞળમમંદિર પાસે, पासिताएगा (सौराष्ट्रा चिन उद्४र७ धमानाल. तमारे त्यां निप्रतिमानी प्रतिष्ठा रही छे ते भाजी घाटो जानेह भिनेधरनी प्रतिमा भारी विनधरणी बाणी खो जे मा विश्वमां कवाने सात्मउया माटे मोटामा मोटु भातंजन छे. सा सालंजन सधने सौ આત્મરૢલ્યા साधो मे शुभेच्छा. ખારસાના માન્ પ્રચાર માટે) પરદેશમાં नैनधरना प्रभारमारे, मनोने स्वधर्मम स्थिर रखा माटे महान् संस्था रोगी बहने के बेभा सनकविध प्रवृतिरजो शासकी हाय. त्यां जत्रित यसा सा विषे विचार उरे काही न्यादयतु साधरिमिक भीन जावा महान डायनुं जा वे मेमा मोडुं वटवन निर्माण याय सेवी प्रलुने प्राप्ना ३. + कैनों ब्लक For Private & Personal Use Only 4-5-66 सहर हवे मुनिराजन भुबन विनयान्तेवासीमुनि विना ध www.jainelibrary.org
SR No.525501
Book TitleThe Jain 1988 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNatubhai Shah
PublisherUK Jain Samaj Europe
Publication Year1988
Total Pages196
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, UK_The Jain, & UK
File Size8 MB
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