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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir January-2019 98 99 100 SHRUTSAGAR 7 जे लांच लेता नहि कदि, उत्तम जीवनने आचरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. निर्दोष मनडुं वेद छे सर्वे जीवोनुं हित चहे, परमार्थ माटे प्राण दे ते वेद साचो जग कहे; प्राणो पडे पण जूठ पक्षोमां न जातो जे भळी, एवी अमारी वेदनी छे, मान्यता निश्चय खरी. जे भेद भाव धरे नहीं ने सर्व- हित आदरे, मतभेद निन्दादिक सही अपकारी- हित आचरे; ते वेदमूर्ति जीवती जे जागती जग हितकरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. साचा अमारा वेद अनुभव शिक्षणो जे जे मळे, साचा अमारा वेद ते छे दःखडां जेथी टळे; साची अमारी वेदमूत्ति विश्वमांहि केवळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. ज्यां राग नहि ज्यां द्वेष नहि ज्यां वेद कर्ता ते खरो, ते वेदनो प्रभु छे खरो एवा प्रभुओ अवतरो; ते सत्यना सागर प्रभु, अर्हन् विभु ब्रह्मा बळी, एवी अमारी वेदनी छे, मान्यता निश्चय खरी. सामाजीकी प्रगति करे कल्याण करवा सर्वनु, तेना हृदयमां वेद छे, ज्यां नाम नहि छे गर्वनें; सहु जीवना कल्याणमां वृत्ति मझानी हित भळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. निरवद्य प्रभुनी भक्तिमां स्फुरणा उठे जे शिवकरी; ते भाव वेदो छ सही अध्यात्मभावे जयकरी, शक्ति अनंति खीलवे निज आत्मनी वेगे वळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. 101 102 103 104 (क्रमशः) For Private and Personal Use Only
SR No.525342
Book TitleShrutsagar 2019 01 Volume 05 Issue 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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