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श्रुतसागर
जनवरी-२०१९ पुस्तक समीक्षा
राहुल आर.त्रिवेदी पुस्तक नाम - स्याद्वादपुष्पकलिका स्वोपज्ञ 'कलिकाप्रकाश' वृत्तियुता कर्ता - उपाध्याय श्रीचारित्रनन्दी संपादक - मुनि वैराग्यरतिविजय म.सा. प्रकाशक - श्रुतभवन संशोधन केन्द्र, पूना प्रकाशन वर्ष - २०७१(ई.२०१५), आवृत्ति- प्रथम कुल पृष्ठ - ३२+१८४+२=२१८ भाषा - संस्कृत
भगवान महावीर के समय भिन्न-भिन्न अनेक वाद प्रचलित थे, अनेक दृष्टियाँ विद्यमान थीं। सभी अपने-अपने पक्ष को स्थापित करने में लगे हुए थे। जीव, जगत
और ईश्वर के विषय में प्रश्न उठा करते थे। उनके नित्यत्व और अनित्यत्व के विषय में विवाद होते रहते थे। जीव और शरीर भेदाभेद को लेकर विवाद चलता रहता था, इन सभी उत्तरों के प्रति महावीरस्वामी ने उन विरोधी वादों का समन्वय करके उनके स्वीकार में अनेकान्तवाद की प्रतिष्ठा की। संसार के सभी व्यवहारों में कहीं न कहीं अनेकान्तवाद का आश्रय अवश्य लेना पड़ता है। अनेकान्तवाद के बिना संसार का सामान्य व्यवहार भी संभव नहीं है। अनेकान्तवाद सर्वत्र व्यापक है, इतना ही नहीं अपितु अनेकान्तवाद को गुरु की उपमा दी गई है। अतः यहाँ अनेकान्तवाद या स्याद्वाद को नमस्कार किया गया है। जिस तरह गुरु ज्ञानरूपी दीपक से अज्ञानतारूपी अंधकार का नाशक होता है, उसी प्रकार स्याद्वाद तत्त्व की अज्ञानता का नाशक एवं ज्ञानरूपी प्रकाश को देने वाला होता है। ऐसे ही सम्यग्ज्ञानरूपी प्रकाश को प्रकाशित करने के लिए संपादक मुनि श्रीवैराग्यरतिविजय म.सा. ने श्रुतभवन संशोधन केन्द्र, पूना से उपाध्याय श्रीचारित्रन्दी विरचित स्वोपज्ञ कलिकाप्रकाश वृत्ति युक्त स्याद्वादपुष्पकलिका को “स्याद्वादपुष्पकलिका स्वोपज्ञ कलिकाप्रकाशवृत्तियुता” नाम से प्रकाशित किया है।
स्याद्वादपुष्पकलिका द्रव्यानुयोग का ग्रंथ है। द्रव्यानुयोग विषयक ग्रंथ की परिभाषा कठिन होती है, अतः वे दुरूह होती हैं। उसके अध्येता भी अल्प होते
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