________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
श्रुतसागर
20
जे निज आतम वसि करी, इंद्रिय विषय विरत्तू ए । मोह तणा दल निरदली, सील धरइ सुपवित्तू ए
मात पिता सुत कामिनी, प्रमुख तजी भव पासू ए । जेह निसंग पणउ धरइ, ते धन सुगुण निवासू ए
तरुण पणइ जे तप तपइ, विषम परीसह जीतू ए । उपसम रस करि पूरीया, सम तिण मणि अरि मीतू ए
इम गुणवंत तणा सदा, गुण ग्रहतां गुण होई । फूल तणइ परिमल गुणइ, तेल तणउ गुण जोई रे
ढाल- १९
ढाल- १२
लहि मानव भव दोहिलउ, वलि सरीर नीरोग । उत्तम कुलि उतपति लही, देव सुगुरु संजोग संवेग रस आणीयइ रे, जाणी श्री गुरुवा आलस प्रमुख तणइ उदइ, आगम श्रवण दुलंभ। सद्दहणा पुणि दोहिली, जिम जल काचइ कुंभि
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
श्री जिनसासनि लोक सरूप वखाणीयइ रे, चवदह राज प्रमाण जनम मरण करि वार अनंती फरसीयउ रे, जाणइ ते जगभाण लोकसरूप विचारउ आतमहित भणी रे, निज मन तन थिर राखि । धर्मध्यान ए श्रीमुखि जगगुरु उपदिसइ रे, तीजइ अंगइ साखि भवि भवि भमतां जीव करम वसि आपणइ रे, मात पिता सुत होइ । तेहजि वयर विसेषइ शत्रुपणउ भजइ रे, पंचम अंगइ जोइ वाघिणि भवि सुत देखी साधु सुकोसलउ रे, जोवउ भव परिणाम । वयर तणइ वसि माता सुत आमिष भखइ रे, सारइ ते सिवकाम स्वारथ कारणि जीव तणइ सहूयइ सगउरे, स्वारथ विण सवि दूरि । लोगसरूप इसउ मन माहे चींतवइ रे, धरि उपसम रस पूर
जनवरी-२०१९
भावन०॥५५॥
भावन०॥५६॥
भावन०॥५७॥
भावन०॥५८॥
॥५९॥
लोक०॥६०॥
लोक०॥६९॥
लोक०॥६२॥
लोक०॥६३॥
॥६४॥
॥आंकणी॥
संवेग०॥६५॥