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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 13 January-2019 द्वारा आत्मा निर्मल भाव को धारणकर यथेष्ट स्थान प्राप्त कर सकती है। १०. धर्म भावना- • डूबते का सहारा, अनाथों का नाथ, सच्चा मित्र एवं परभव में साथ चलने वाला यह धर्म सच्चा संबन्धी है। जो उसे धारण करता है उसके सारे संताप दूर हो जाते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार इस संसार में एकमात्र शरण धर्म है, इसके अतिरिक्त जीव की रक्षा कोई और नहीं कर सकता है। जरा-मरण-कामतृष्णा आदि के प्रवाह में डूबते हुए प्राणियों के लिए धर्म द्वीप का काम करता है । इसी धर्मरूपी द्वीप का जीव शरण लेता है। धर्म में दृढ श्रद्धा और आचरण में धर्म को साकार करते हुए आत्मा को इहलोक एवं परलोक में सुखी बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। ११. लोकस्वरूप भावना- लोक अर्थात् जीवसमूह और उनके रहने का स्थान । यह लोक चौदह रज्जु प्रमाण है । इस लोक में भव-भ्रमण करते हुए जीव कर्मवश माता-पिता- -पुत्र बनता है। पुनः यदा-कदा वैरवश शत्रु भी बन जाता है। साधु सुकोशल को देखकर बाघिन के भव में वैरवश पूर्व भव के पुत्र अर्थात् साधु सुकोशल का मांसभक्षण करती है। इस प्रकार इस लोक में स्वार्थ के कारण सभी स्वजन हैं और स्वार्थ न होने पर सभी दूर हो जाते हैं। लोक के ऐसे स्वरूप का चिन्तन कर उपशम रस में निमग्न होकर लोक के अग्रभाग पर पहुँचने की भावना करना लोकस्वरूप भावना है। १२. बोधिदुर्लभ भावना- इस संसार में अनेक दुर्लभ वस्तुओं में से कोई जीव उन दुर्लभ वस्तुओं को आसानी से प्राप्त कर ले, परंतु बोधि अर्थात् सम्यग्ज्ञान दर्शन चारित्र की प्राप्ति अत्यंत कठिन है। बोधि अर्थात रत्नत्रय जो जीव का स्वभाव है । स्वभाव की प्राप्ति दुर्लभ नहीं मानी जा सकती। परंतु जीव जब तक अपने स्वरूप को नहीं जानता है और कर्म के अधीन रहता है, तब तक बोधिस्वभाव पाना दुर्लभ है और कर्मकृत सभी पदार्थ सुलभ हैं। अनन्त काल से ८४ लाख योनियों में भ्रमण करते हुए यह मनुष्य भव मिला है। अनेक बार चक्रवर्ती के समान ऋद्धि प्राप्त की है। उत्तम कुल और आर्यक्षेत्र भी पाया है, पर चिन्तामणि के समान सम्यक्त्व रत्न प्राप्त करना अत्यंत दुर्लभ है, इस प्रकार चिन्तन करना बोधिदुर्लभ भावना है। प्रस्तुत संधि में सरलता के साथ सरसता और कथा विवरण के साथ मार्मिकता का गुंफन कर कर्ता ने काव्य की गरिमा में वृद्धि की है। खरतरगच्छ साहित्य कोश में यह क्रमांक ८७६ पर उल्लिखित है। For Private and Personal Use Only
SR No.525342
Book TitleShrutsagar 2019 01 Volume 05 Issue 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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