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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खरतरगच्छ खरतरगच्छ खरतरगच्छ श्रुतसागर जून-२०१८ ७. वर्णकारोहण, ८. चूर्णारोहण, ९. इंद्रध्वजा, १०. आभरणारोहण, ११. पुष्पघर, १२. पुष्पप्रकट, १३. अष्टमंगल, १४. धूपोत्क्षेप, १५. जिनगुण गीत गान, १६. नृत्यनाटक और १७. वाजिंत्र पूजा। कृति की रचना में अपभ्रंश बहुल शब्दों का प्रयोग किया गया है। इस प्रकार की सतरह भेदी पूजा का प्रचलन सत्रहवीं शताब्दी में विशेष रूप से हुआ प्रतीत होता है। उस काल में अनेक विद्वानों ने इस पूजा की रचना की है, उपलब्ध सूची इस प्रकार है| १७ भेदी पूजा साधुकीर्तिजी वि.सं.१६१८ १७ भेदी पूजा नयरंगजी खरतरगच्छ वि.सं.१६१८ अप्रकाशित १७ भेदी पूजा स्तवन श्रीसारजी वि.सं.१६४२ १७ भेदी पूजा स्तवन वीरविजयजी खरतरगच्छ वि.सं.१६५३ अप्रकाशित १७ भेदी पूजा स्तवन जिनगुणप्रभसूरिजी १७वीं शताब्दी १७ भेदी पूजा सकलचंद्रजी तपागच्छ १७वीं शताब्दी १७ भेदी पूजा स्तवन पार्श्वचंद्रसूरिजी बृहन्नागपुरीय १७वीं शताब्दी तपागच्छ १७ भेदी पूजा स्तवन | समरचंद्रजी पायचंदगच्छ १७वीं शताब्दी १७ भेदी पूजा जिनसमुद्रसूरिजी खरतरगच्छ वि.सं.१७१८ अप्रकाशित १७ भेदी पूजा स्तवन । धर्मवर्धन गणि १८वीं शताब्दी १७ भेदी पूजा सज्झाय उपा.यशोविजयजी । तपागच्छ १८वीं शताब्दी गणि | १७ भेदी पूजा रास - ज्ञानसागरजी अचलगच्छ । वि.सं.१७९७ इनके अतिरिक्त अमरविबुध, रत्नचंद्र, मेघराज, मालदेव, जीतचंद, जीवराज, गुणसागरसूरि, विजयानंदसूरिजी, आचार्य जिनमणिप्रभसूरि एवं अज्ञातकर्तृक पाँच रचनाएँ भी सतरह भेदी पूजा की प्राप्त होती हैं। प्रस्तुत कृति खरतरगच्छ साहित्य कोश में क्रमांक १७४५ पर अंकित है। कर्ता परिचय 'खरतरगच्छ के बृहद् इतिहास' के अनुसार खरतरगच्छ की बेगड शाखा के आचार्य श्री जिनमेरुसूरिजी के पट्ट पर आचार्य श्री जिनगुणप्रभसूरिजी बिराजे। खरतरगच्छ For Private and Personal Use Only
SR No.525335
Book TitleShrutsagar 2018 06 Volume 05 Issue 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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