________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
June-2018
॥१॥
बा०॥४॥
SHRUTSAGAR
23 देव तणा महिमा थिकु, कण जूजूआ होइ। सोमविमलसूरि इम भणइ, नरभव हारिओ न होइ ॥जोउ०२॥५॥
॥ इति धान्य दृष्टांत तृतीय-३॥
॥ढाल॥ प्रथवी' मुगट नगर वर जाणुं', राजा तिहां जितशत्रु' निज प्रताप तेजइ करी लीणु, जीता सघला सत्रुजी बापडला जीवडला, कां न करइ जिनधर्म । मंडप थंभ जूअ दिठंतइ, दोहिलु ए नर जन्म जी
॥२॥ तस घरि सुबुधि नामि वर महितु', पुत्र एक सपरांणु। पिता तणुं राज लेवा वांछइ, कहइ सुबुधि नरपति'' जाणु जी बाप०॥३॥ राय सुबुधि बुधि एहवी मांडइ, जु जू रमता जीपइ। मंडपि थंभि अठोत्तरसु छइ'', होसि तेतली दीपइ' जी वार एतली सुत'' तुं जीपइ, तु ए राज तहारुओ। वार एतली वचि जुहारइ, तु ए राज्य अम्हारुं जी देव आराधि तेह जइ जीपइ, पणि नरभव लही जीणइ हारीओ सोमविमलसूरि ईम जंपइ', दोहिलु एह जमारु जी
बा०॥६॥ 1 पृथवी 2 मुकुट 3 नामि 4a जतसत्र, bजितशत्रु 5a जनधर्म, bजिनधर्म 6 aसबधि, bसुबुधि 7 aमहंतु, bमहितु 8a धन, bराज 9aकहु, bकहइ 10 aसबधि, bसुबुधि 11 नृप 12 a अठोत्तर संचइ, b अठोत्तरसु छ। 13 जीपइ 14aसत, bसुत 15 बोलइ
बा०॥५॥
For Private and Personal Use Only