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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सितम्बर-२०१७ ॥२८॥ ॥२९॥ श्रुतसागर बाह्यचरण चारित्रमां, एकान्ते नहि धर्म; आत्मज्ञान विना कदि, टळे न आठे कर्म. अंतरनुं चारित्र ते, चक्षु थकी न जणाय; दृश्य वस्तु पुद्गल सदा, चेतो आतमराय. अल्प समयमां साधिये, आत्मतत्त्व सुखकार; लहो भव्य शुद्धात्मने, परम तत्त्व अवतार. सिद्ध्या सिद्धे सिद्धशे, करी कर्मनो अंत; ते सहु आतम जाणीने, इम भाखे भगवंत. आत्मिक शुद्ध स्वभावना, उपयोगे छे धर्म; बुद्ध्यब्धि सुख शांतिथी, पामे शाश्वत शर्म. अनुभव बत्रीशी कही, गाम पोर दिन एक; विचरी आतम देशमां, पामी साची टेक. ॥३०॥ ॥३१॥ ॥३२॥ ॥३३॥ प्राचीन साहित्य संशोधकों से अनुरोध श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं या किसी पूर्वप्रकाशित कृति का संशोधनपूर्वक पुनः प्रकाशन कर रहे हैं अथवा महत्त्वपूर्ण कृति का अनुवाद या नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, इसे हम श्रुतसागर के माध्यम से सभी विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादन कार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? यदि अन्य कोई विद्वान समान कृति पर कार्य कर रहे हों तो वे वैसा न कर अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों का सम्पादन कर सकेंगे. निवेदक- सम्पादक (श्रुतसागर) For Private and Personal Use Only
SR No.525326
Book TitleShrutsagar 2017 09 Volume 04 Issue 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size9 MB
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