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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir July-2017 सुणजो०॥३९॥ सुणजो०॥४०॥ सुणजो०॥४१॥ सुणजो०॥४२॥ सुणजो०॥४३॥ SHRUTSAGAR रामा रामा शुं कहो छो, रामा भवनुं मूळ; रामा रागे राम न मळशे, अंते धूलंधूल. राम राम जपतां जे जागे, होवे जन ते राम; आतम ते परमातम रूपे, साचा जाणे राम. रागी रागी शुं कहो छो, जूठा जगना राग; आतम रागे जे रंगाया, धन धन ते सौभाग्य. लालच लालच शुं करो छो, लालचनो नहि अंत; लालच त्यागी रागी जगमां, शोभे साचा संत. वैरी वैरी शुं कहो छो, वैरी आपोआप; वैर शमावे समता आवे, नासे सहु संताप. वेश्या वेश्या शुं करो छो, कुमति वेश्या दिल; विकार वेश्या वैर झेरने, क्षणमां आतम पील. शांति शांति सहु कहे छे, शांति जाणे कोय; शांति जगनी भ्रांति हरती, कबू न दुःखडां होय. सेवा सेवा शुं करो छो, सेवा करता सर्व; परमातम गुरूजननी सेवा, टाळे सघळा गर्व. साधु साधु शुं कहो छो, साधु साधे धर्म; पंचमहाव्रत प्रेमे पाळे, टाळे आठे कर्म. साचुसाचुं शुं कहो छो, साचुं आतम सुख; परमां सुखनी आशा राखे, पामे भवमां दुःख. हार्या हार्या शुं कहो छो, हार्या कामे वीर; रागादिकने जीत्या जगमां, तीर्थंकर महावीर. ज्ञानी ज्ञानी शुं कहो छो, ज्ञानी गोथां खाय; रागद्वेषने जीते जे जन, ज्ञानी तेह गणाय. सुणजो०॥४४॥ सुणजो०॥४५॥ सुणजो०॥४६॥ सुणजो०॥४७॥ सुणजो०॥४८॥ सुणजो०॥४९॥ सुणजो०॥५०॥ (वधु आवता अंके) For Private and Personal Use Only
SR No.525324
Book TitleShrutsagar 2017 07 Volume 04 Issue 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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