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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन श्रुतपरंपरा - कल, आज और कल डॉ. हेमन्त कुमार यह प्रायः सर्वमान्य तथ्य है कि जैन परम्परा की श्रुत-संपदा किसी भी अन्य भारतीय धार्मिक परम्परा की अपेक्षा विपुलता, विविधता एवं गुणवता की दृष्टि से कम नहीं है. विभिन्न भाषयिक एवं विविधविषयक उच्चकोटि की रचनाओं से जैन मनीषी अतिप्राचीन काल से ही माँ भारती के भंडार को समृद्ध करते आये हैं. जैन धर्म के चतुर्विध संघ में श्रमण-श्रमणी एवं श्रावक-श्राविका ये मुख्य अंग हैं. श्रमण-श्रमणी संसारत्यागी एवं मोक्षमार्ग के साधक होते हैं. गृहस्थ जीवन व्यतीत करने वाले श्रावकश्राविकाओं के लिए वे धर्मपथ प्रदर्शक, आराध्य एवं संघगुरु होते हैं. इन विषयातीत, निष्परिग्रही एवं निरारंभी श्रमणों की विशेषता ज्ञान-ध्यान-तपोरक्त रहना है. उनका प्रयत्न सदैव अभीक्षण-ज्ञानोपयोग में संलग्न रहना होता है. स्वाध्याय उनके तपानुष्ठान का महत्वपूर्ण अंग होता है. अतएव अति प्राचीन काल से ही अनगिनत आचार्य एवं मुनिराज साहित्य सृजन में प्रमुख योग देते आये हैं, तो साहित्य के संरक्षण व प्रतिलेखन में अनगिनत श्रावक-श्राविकाओं ने विविध प्रकार से सहयोग प्रदान कर जिनवचन रूप श्रुतसाहित्य के विरासत को आने वाली पीढी को सौंपा है. वीतराग परमात्मा के द्वारा प्ररूपित अर्थपूर्वक देशना सुनकर परंपरा से जान-समझकर, चिंतन-मनन कर, उनके बाद के श्रमण भगवंतों ने जीवविज्ञान, आत्मविज्ञान, कर्मविज्ञान, पुद्गलविज्ञान, विश्वरचना तथा जड-चेतन के स्वाभाव का निरूपण सुंदर ढंग से किया गया है. ये ग्रंथ पामर जीवों के समझने में भी अत्यन्त दुष्कर हैं. इनके निर्माण की तो बात ही क्या? यही कारण है कि ये ग्रन्थ समस्त विश्व के लिए आदरणीय बन सके हैं. इन ग्रन्थों के पीछे सचमुच साक्षीभाव ही है. कर्ताभाव न होने के कारण यह अनेक प्रकार के दूषणों से रहित हैं. ग्रंथरचना की विशिष्ट परंपरा जैनसंघ में प्राचीनकाल से गतिमान है. “नामूल लिख्यते किंचित्” इस न्याय के अनुसार बिना आधार के कुछ भी नहीं लिखना चाहिए. इस परम्परा का जैन श्रमणों ने सुन्दर रीत से निर्वाह किया है. जिसके कारण इन ग्रन्थों का आज भी सर्वत्र अध्ययन किया जाता रहा है. अनेकानेक ग्रंथों का अध्यन-मनन कर ग्रंथरचना का कार्य आज भी चल रहा है. श्री महावीर प्रभु ने जो देशना दी, उसे सर्वप्रथम गणधरों ने सूत्रबद्ध किया. उन For Private and Personal Use Only
SR No.525321
Book TitleShrutsagar 2017 04 Volume 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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