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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR March-2017 संगृहीत हस्तलिखित प्रतियों में उपलब्ध कृतियों में से ६० गेय कृतियाँ व महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी के जीवनचरित्र का प्रकाशन करवाया था। इस ग्रंथ में संपादक आर्य मेहुलप्रभसागरजी के गुरु गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरिजी द्वारा लिखित विशिष्ट प्रस्तावना (वंदे क्षमाकल्याणम्) में महोपाध्यायजी के जीवनचरित्र को विस्तारपूर्वक वर्णित किया गया है। साधनाकाल, व्यक्तित्व, कृतित्व आदि का वर्णन करते हुए भक्तिपरक, विधि-विधानपरक, सैद्धांतिक, इतिहासपरक व कथासाहित्य आदि विषयक कृतियों का परिचय दिया गया है। प्रथम भाग के अंतर्गत महोपाध्यायजी की भक्तिपरक जैसे चैत्यवंदन, स्तुति, स्तवनादि ११४ कृतियों का संग्रह दिया गया है. जिसमें उनकी २ स्तुतिचतुर्विंशिका वाचकों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं, उसके साथ ही विभिन्न ऐतिहासिक शत्रुजयादि तीर्थमंडन तीर्थंकरों की स्तुतियाँ, स्तवन व जिनदत्तसूरि, जिनकुशलसूरि, जिनभक्तिसूरि, जिनलाभसूरि, वाचनाचार्य अमृतधर्मादि गुरुभगवंतों के विविध अष्टक भी समाविष्ट हैं। परिशिष्ट में उनके गुणों को दर्शाने वाली तथा व्यक्तित्व को उजागर करती हुई ५ कृतियाँ भी द्रष्टव्य हैं। द्वितीय भाग में सर्वप्रथम महोपाध्यायजी द्वारा वि.सं. १८३० में रचित इतिहासपरक संस्कृतभाषा में निबद्ध अतिविस्तृत कृति “खरतरगच्छीय पट्टावली” दी गई है, फिर चतुर्विधसंघ के लिए आवश्यक ऐसे दो प्रकरण “साधुविधिप्रकाश प्रकरण” व “श्रावकविधिप्रकाश प्रकरण” को समाविष्ट किया गया है, जिसमें प्रतिक्रमणादि विधियों का सुंदरतम निरूपण किया गया है। श्रावकविधि प्रकाश के अंत में कठिन शब्दों की सूचि भी अर्थसहित दी है। महोपाध्यायजी द्वारा प्रतिक्रमण की हर विधि के कारण को स्पष्ट करके उसकी उपयोगिता को निरूपित करने वाली कृति “प्रतिक्रमण हेतवः” को सम्मिलित किया गया है। अंत में महोपाध्यायजी प्रणीत “सूक्तरत्नावली” के रूप में जैनसिद्धांतों को आवेष्टित करती सूक्तियों को स्थान दिया गया है। प्रस्तुत ग्रंथ समस्त जैनसंघ के लिए बहुत ही उपादेय व श्रेयस्कर सिद्ध होगा। आर्य श्री मेहुलप्रभसागरजी ने इस ग्रंथ को प्रकाशित कराकर संशोधक वर्ग के लिए सामग्री तो उपलब्ध कराया ही है साथ ही जैन साहित्य को समृद्ध भी किया है। उनके प्रयास के कारण ही आज महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी की कृतियों का संग्रह हमें प्राप्त हुआ है। आर्य श्री मेहुलप्रभसागरजी भविष्य में भी इसी तरह श्रुत की सेवा करते रहें तथा युगयुगांतर तक उनके द्वारा रचित, संपादित, संगृहीत कृतियाँ सुरक्षित रहे व समग्र जैनसमाज लाभान्वित होता रहे, ऐसी शासनदेव के श्रीचरणों में प्रार्थना सह शुभेच्छा। For Private and Personal Use Only
SR No.525320
Book TitleShrutsagar 2017 03 Volume 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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