SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छिन्नू जिनवरांरौस्तवन आर्य मेहुलप्रभसागर कृति परिचय प्रस्तुत कृति उपाध्याय प्रवर श्री लक्ष्मीवल्लभजी महाराज द्वारा मारुगुर्जर भाषा में निबद्ध तेरह गाथा की स्तुतिमय रचना है। लगभग सवा तीन सौ वर्ष प्राचीन व अद्यपर्यन्त प्राय: अप्रकाशित इस लघुकृति में छियानवे परमात्माओं की नामोल्लेख पूर्वक वंदना की गई है। जिनमें इस अवसर्पिणी काल के जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र के आश्रयी वर्तमान श्री ऋषभदेवादिक २४ तीर्थंकर, अतीत काल के श्री केवलज्ञानी आदि २४ तीर्थंकर, अनागत काल के श्री पद्मनाभादि २४ तीर्थंकर एवं महाविदेह क्षेत्र में विचरण कर रहे विहरमान श्री सीमंधरस्वामी आदि २० तीर्थंकर तथा श्री ऋषभ-चंद्रानन आदि शाश्वत ४ जिनेश्वरों का परिगणन किया गया है। इस तरह २४+२४+२४+२०+४ =९६ तीर्थंकरों की स्तुति की गई है। स्तवन के प्रारम्भ में सकल जिनवरों को प्रणाम कर श्रुतदेवता का ध्यान किया गया है तथा अंत में इन सभी तीर्थंकरों के नाम स्मरण के फलस्वरूप भव-भव के पाप दूर चले जाते हैं, यह बताया गया है। कलश में कर्ता ने अपने गुरुवर श्री लक्ष्मीकीर्ति उपाध्याय के चरणकमलों का मधुकर बतलाकर अपनी विनयशीलता उजागर की है। कृति में रचना संवत् का उल्लेख नहीं है। फिर भी रचनाकार की साहित्योपासना काल उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर वि.सं. १७२१ से वि.सं. १७४७ तक का माना जा सकता है। उसी काल में इस कृति की भी रचना हुई है। प्रस्तुत कृति में प्राकृत और अपभ्रंश भाषा के अनेक पदों का प्रयोग दर्शनीय है। कर्ता परिचय ___यश:पुंज तृतीय दादागुरुदेव आचार्य श्री जिनकुशलसूरि के शिष्य गौतमरास के रचयिता विनयप्रभ उपाध्याय से एक पृथक् साधु परम्परा चली जो एक स्वतंत्र शाखा न होकर मुख्य परम्परा की आज्ञानुवर्ती रही। विनयप्रभ उपाध्याय के शिष्य विजयतिलक उपाध्याय हुए। उपाध्याय क्षेमकीर्ति इन्हीं के शिष्य थे। प्रचलित मान्यतानुसार उपाध्याय क्षेमकीर्ति ने एक साथ ५०० धावड़ी(बाराती) For Private and Personal Use Only
SR No.525320
Book TitleShrutsagar 2017 03 Volume 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy