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March-2017
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SHRUTSAGAR
जिणि खोज्या तिनि पाईया, उंडे पाणी पेंत; मूढ विचारा क्या केर, रह्या किनारे बैठ निर्विकार निर्दोष शुचि, सांत सदा निरूपाधि; परमात्मा पूरण परम, सहेज अनंत समाधि एह स्वरूप ईश्वर तणुं, जोता तत्त्वविवेक; वीतराग मुद्रा विना, अवर नथी किहां एक पण तसु गुरुकृपा थकी, अनुभव दृष्टि अनंत; लही अनुकुल अद्रष्ट वशि, पेखे कोई पुन्यवंत स्नान करो संध्या करो, भस्म लगावो देह; परमात्मा जाणो नहीं, सरवे अनारथ तेह सद्गुरुनी शिक्षा विना, तप तीरथ व्रत दांन; अबल डालिका रोप परे, निष्फल होए निदान सद्गुरुनी सेवा विना, मूढ धरमने ध्याये; खेवढ(षढ) विहुणी नाव जिम, जिहां तिहां झोला खाये मोह पडल उतारियुं, ज्ञान शलाका लेय; अंतर नेत्र उधाडीओ, नमोस्तु सद्गुरु तेह सो युग लगे करे सेवना, सर्व वस्तु मुंकी पाइ (अ); तो पण गुरुना गुण तणो, ओसीकल' नवि थाये (य) गुण अनंत श्रीगुरु तणां, कह्यां केही परे जाये; जिणे अगाध भव-सिंधु ए कीधो गोपद प्राय भवदुःख शिवसुख गुरु अपणा, गयण गुणह भगवंत; खल कुचरित उपगार गुरु, किण ही कह्या न जंति(त) धन्य संत जे आपथी, सदा सुगुण आवास; बली श्रीखंड जिम आपथी, परने करे सुवास तुंबीफल प्रवहण समा, सद्गुरु तारणतरण;
कुगुरु बोलण आप परि, लोहशिला-अनुहरण 1 ऋणमुक्ति 2 गाय पगलां जेवो नानो.
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