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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 17 श्रुतसागर दिसम्बर-२०१६ राग-धन्यासी श्रीनेमीश्वर पूजो भावथी, लेवा केवलनाण, जे देखावइ अर्थ सवे सदा, जिम ऊगंतो भाण श्रीनेमीश्वर...॥१॥ जिनपद चक्राधिप पदवी वडी, पदवी शिवनी जांणि, ते देवा पणि समरथ ए कह्यो, प्रभुजी गुणमणि खांणि श्रीनेमीश्वर...॥२॥ च्यार अनंता रे पोतइ एहनइ, हवणां मुगति मझारि, ए प्रभु तूठो ते पणि आपस्यइ, निज मनि इम निर्धारि श्रीनेमीश्वर..॥३॥ चंबेलीनइ चंपक केवडो, आणी कुसुमनी जाति, जासूलइस्युं भाति बनावी, पूजो प्रभु सुप्रभाति श्रीनेमीश्वर...॥४॥ समुद्रविजय जिन बावीसमो, प्रभुजी गुणनो गेह, कामकुंभनइ सुरतरुनी परिं, पूरइ वंछित एह श्रीनेमीश्वर...॥५॥ ___ ढाल-राग-धन्यासी श्रीउन्नतपुर सुंदरु रे, जिहां जुहार्या पंच प्रासाद रे, भाग्य प्रगट थयो माहरो रे, चित थयो उल्हाद रे श्रीउन्नतपुर...॥१॥ नेमीश्वर संभव जिन रे, पास अमीझर जेह रे, देव ऋषभ जिन शांतिजी रे, मूलनायक जिहां एह रे श्रीउन्नतपुर...॥२॥ इशांवक (१६८३) वसु वलि सहु रे, दर्शन माहव-नारि रे, ए संवत्सर मइ कह्यो रे, पंडित तुं मनि धारिरे श्रीउन्नतपुर...॥३॥ पक्ष विसल बाहुल तणा रे, वार अरूण उडु मूल रे, सायकमित तिथि जाणयो रे, ज्ञान तणुं जे मूल रे श्रीउन्नतपुर... ॥८॥ इणि संवत्सरि इणि तिथि रे, इणि वारिं इणि मासि रे, श्रीउन्नतपुर नगरमांरे, आवि बहु उल्लासि रे श्रीउन्नतपुर... ॥५॥ जेसिंगनी पट्टोधरु रे, श्रीविजयदेवसूरिंद रे, तेह तणइ सुपसाउलइ, स्तविआ पंच जिणिंदरे श्रीउन्नतपुर...॥६॥ पंचानुत्तर सुख दइ रे, ए वलि पंचम नाण रे, पूज्या दिइ गति पांचमी रे, ए पंचइ जिण भाण रे श्रीउन्नतपुर...॥७॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525317
Book TitleShrutsagar 2016 12 Volume 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size12 MB
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