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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org 15 ढाल पशु आक्रंदित श्रवणे सुणिअं, प्रभुजीइ सारथिनइं भणिअं, वालिनइं रथ तुं धणिअं, नहिं परणुं मनि मुणिअं राजुलि छंडी प्रभुजी वलिउ, एतो त्रिभुवनि मोटो बलिउ मयणपिशाचि न छलिउ, भोगपंकि नवि कलिउ देईनई संवच्छर-दानं, वलिअ त्यजीनइ सवि अभिमानं, इंद्रविहित-गुणगानं, संयम लिइ शुभध्यानं सकलपरिसह पूरो सहिउ, श्रीनेमीश्वर केवलह लहिउ, त्रिभुवनजन गहगहिउ, सकल सुरासुर महि प्रभुनी अमृत वाणी पीधी, राजुलि राणी दिक्षा लीधी, केवल लहिन सिद्धी, ए तो वात प्रसिद्धी अनुक्रमि गिरिनारि संचरिउ, प्रभुजी जन्ममहोदधि तरिओ, शिवरमणीइ वरिओ, च्यार अनंते भरिओ प्रतिमा रूपि नेमि जिणंद, कर्मकंसभेदनगोविंद, सोहइ जस मुखचंद, दिइ सहुनइ आनंद ढाल- राग असाउरी दक्षिण पासइ ऋषभ जिणिंदा, सुमंगला वलि देवि सुनंदा, परिणावइ आवी प्रभु इंदा, धन धन तुं मरूदेवीनंदा ॥१॥ दु ए जिनभवन कराविउं, खरचीनइ निज दाम, भविअण भाविं संभलो, हवइ कहुं तस नाम Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only दिसम्बर-२०१६ 11211 ॥२॥ 11311 11811 11411 ॥६॥ ॥२॥ तस दक्षिण करि धृतकल्लोल, पासइ फुल्लित दोइ कपोल, भविजन विधिस्युं करि अंघोल, पूजो घृतस्युं करो कल्लोल दक्षिण..... राजुलवरनइ पासिं डावइ, सामलपासजी अतिहि सुहावइ, जस पूजेवा बहुजन आवइ, पुरिसादाणी नाम कहावइ प्रभु डावइ करि न जिन चओमुक्ख, चउगइ केरां टालइ दुख, शशि सम सोहइ जेहनु मुक्ख, ए प्रभु पूजो लेवा सुक्ख 11911 दक्षिण......॥३॥ दक्षिण......।।४।। 11311
SR No.525317
Book TitleShrutsagar 2016 12 Volume 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size12 MB
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