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श्रुतसागर
अगस्त-२०१६ कर्मना पर्यायोने अने आत्माना पर्यायोने भेदज्ञानथी भिन्न भिन्न जाणीने आत्मज्ञानी हंसनी पेठे कर्मना पर्यायोथी मुक्त थइने आत्माना शुद्ध पर्यायोमां एकता लीनता धारण करे छे अने तेथी ते कर्मना पर्यायो नवा धारण थाय तेवी स्थितिमा पोताना आत्माने मूकतो नथी. आत्मज्ञानी शरीरादिक सर्व कर्मना पर्यायोमां शुभाशुभ वृत्तिथी बंधातो नथी. आत्मज्ञानी पोतानामां शुद्ध निश्चय ज्ञाननो प्रकाश पाडे छे अने तेथी अग्निनी पेठे सर्व कर्मने बाळी भस्म करे छे. अग्नि गमे ते पदार्थोना संबंधमां पोतानो उष्ण स्वभाव छोडतो नथी तद्वत् आत्मज्ञानी सर्वत्र शुद्धोपयोगने धारण करी पोतानुं भाव जीवन धारण करी शके छे. अग्निने जेम उधेइ लागती नथी तेम आत्मज्ञानीने कर्मलेप मोहलेपरूप उधेइ लागती नथी. __ आखी दुनियामां कोइ एवी एक वस्तु नथी के जे आत्मज्ञानीने बंधन माटे थाय. आत्मज्ञानी बाह्य जड पदार्थोनी वचमां पोताना असंख्य प्रदेशी आत्माने रहेलो देखे छे तेथी ते सर्व ज्ञेयोनुं ज्ञान करे छे अने पोताना शुद्ध पर्यायोने प्रगट करे छे. कर्मना पर्यायथी भिन्न एवा आत्माना शुद्ध पर्यायोनो उपयोग धारण करनार ज्ञानयोगीने खातांपीतां, उठतां- बेसतां ज्यां त्यां प्रारब्धथी प्रवृत्ति करतां छतां पण अन्तर्थी निवृत्तिरूप शुद्ध सहज समाधि वर्ते छे ते शरीर वा प्राण पर कब्जो मेळववा करतां कर्म पर्यायोथी दूर रही पोताना शुद्ध पर्यायोने प्रगटावीने अनन्त गुण उत्तम चमत्कारोथी पर एवा आत्मानो कब्जो मेळवे छे. शुद्धनय ज्ञान अने तेनी भावनाथी आत्मामां एकत्व प्राप्त थाय छे. इति शुद्धनयायत्तमेकत्वं प्राप्तमात्मनि अंशादि कल्पनाप्यस्य नेष्टायत् पूर्णवादिनः ॥३१॥ (अध्यात्मसार)
ए प्रमाणे आत्मामां प्राप्त थएवं एq एकपणुं ते खरेखर शुद्धनयना ताबे छे. पूर्णवादिने आत्माना अंश वगेरेनी कल्पना पण इष्ट नथी. पूर्णवादी शुद्ध निश्चयथी पोताना आत्मामां परिपूर्णत्व देखे छे अने तेमां एकत्वभावने पामी आनन्दमां मग्न रहे छे. पोताना आत्मानो शुद्ध धर्म प्रगटाववाने माटे आत्मज्ञानीओए शुद्धनयनुं आलंबन लेवु जोइए. आत्माना परिपूर्ण शुद्धधर्मने शुद्धनय दर्शावे छे माटे शुद्धनयनी दृष्टिथी आत्मानुं स्वरूप विचारतां, ध्यावतां, भावतां अशुद्धता टळे छे अने शुद्धता प्रगट थाय छे. पोताने जो के कर्मनी अशुद्धता लागी छे पण पोतानुं शुद्ध स्वरूप प्रगटाववा माटे तो शुद्धधर्मोपयोग धारण करवानी खास जरूर छे.
(वधु आवाता अंके....)
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