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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ગુરુવાણી Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir આચાર્ય શ્રી બુદ્ધિસાગરસૂરિજી सामायिक शीर्षक हेठळ योगनिष्ठ प.पू.आ.भ.श्रीबुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराजे समताभाव अने निस्पृहतानी जे वात करी छे ते खूब ज मननीय छे. तेमां पण पराकाष्ठा अने विस्मयनी वात ए छे के साचो साधक मोक्षनी पण स्पृहा नथी करतो. निःसंगता अने निस्पृहतानी आ पराकाष्ठा समजवा माटे ए कक्षानी योग्यता होवी जरूरी छे तेना विना आवी उच्च आध्यात्मिकतानी वात समजवी घणी अघरी पडे. पू. श्रीए खूब ज सरळ अने सादी भाषामां आ , वात समजाववानो प्रयास कर्यो छे, जरूर वाचकोने आमां रुचि थशे. 'ू' ॥ सामायिक | मोक्ष भवे च सर्वत्र, निस्पृहो मुनि सत्तमः । प्रकृताभ्यासयोगेन, यत उक्तो जिनागमे ॥ १ ॥ अभिधान राजेन्द्र उत्तम मुनि खरेखर मोक्ष अने भवमां सर्वत्र निस्पृह होय छे. संसार अने मोक्षनी स्पृहा रहित समभावे मुनिवर रहे छे. चक्रवर्तियो, इन्द्रो वगेरेना सुखनी इच्छा पण निस्पृह मुनिने होती नथी. पोताना सहज सुखमां मग्न एवा मुनिने पौद्गलिक सुखनी स्पृहा क्यांथी होय? समभावमां वर्तनार मुनिवरने मोक्षनी स्पृहा न होय तो भवनी तो स्पृहा क्यांथी होय? समभावमां परिणाम पामेला मुनिवरनी खरेखर आवी उत्तम दशा होय छे. समभाव भावित मुनिवरनो आत्मा अन्तरथी जुदा प्रकारनो होय छे. सूकेला नारिएलना गोलाने अने नारिएलना छोडने जेवो संबंध छे तेवो संबंध समभावी मुनिने अने दुनियाना पदार्थोने होय छे. समभावी मुनिवरने कोइ पण जातनी इच्छा, स्पृहा, प्रगटती नथी. समभावी मुनिवरनी आवी आन्तरिक परिणाम दशा वर्ते छे, तेने सर्वज्ञ वीतराग देव जाणवा समर्थ थाय छे. ज्ञानी समभावी मुनिवरनी तुलना करनार दुनियामां कोइ नथी. आवी उत्तम निस्पृहताना विचारो जेओना मनमां प्रगटे छे तेवा मनुष्योने धन्यवाद घटे छे, अने जेओ निस्पृहताना विचारोने आचारमां मूकीने For Private and Personal Use Only
SR No.525313
Book TitleShrutsagar 2016 08 Volume 03 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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