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श्रुतसागर
अगस्त-२०१६ भाष्य, चूर्णि तथा विविध टीकाओं का पूर्ण परिचय प्राप्त हो सकता है। अन्त में इस ग्रन्थ में प्रयुक्त शब्दों की अकारादि अनुक्रमणिका भी दी गई है। ___ भाग-४, कर्मसाहित्य व आगमिक प्रकरणों का परिचय- इस भाग में आगमिक प्रकरणों तथा कर्मसाहित्य का परिचय दिया गया है। कर्मसाहित्य का परिचय डॉ. मोहनलाल मेहता ने दिया है तथा आगमिक प्रकरणों के विषय में प्रो. हीरालाल कापडिया के द्वारा लिखे गए गुजराती परिचय का प्रो. शांतिलाल वोरा के द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है।
भाग-५, दार्शनिक व लाक्षणिक साहित्य का परिचय- इस भाग के लेखक पंडित अंबालाल शाह हैं । इस ग्रन्थ में लेखक ने छंद-अलंकार, शकुन, ज्योतिष, व्याकरणादि २७ लाक्षणिक विषयों के साहित्य का परिचय प्रस्तुत किया है, जो प्राचीनकाल में प्रचलित विषय थे और आज भी उपयोगी माने जाते हैं।
भाग-६, काव्य-साहित्य का परिचय- डॉ. गुलाबचंद्र चौधरी द्वारा लिखित इस भाग में मुख्य रूप से जैन काव्य साहित्य का परिचय प्रस्तुत किया गया है। जैन काव्य-साहित्य का तात्पर्य उस विशाल साहित्य से है, जो दृश्य, श्रव्य, चम्पू आदि के रूप में लिखा गया हो।
इसके प्रथम खण्ड में पौराणिक महाकाव्य तथा सभी प्रकार की कथाएँ, दूसरे खण्ड में ऐतिहासिक काव्य, प्रबन्ध साहित्य, प्रशस्तियाँ, पट्टावलियाँ, प्रतिमालेख, विज्ञप्तिपत्रादि तथा तृतीय खण्ड में ललित वाङ्मय, छंद-अलंकार, नाटकादि विषय पर लिखे गए साहित्य का परिचय प्रस्तुत किया गया है।
भाग-७, तमिल, कन्नड व मराठी जैन साहित्यों का परिचय- पं. के. भुजबली शास्त्री द्वारा लिखित इस खण्ड में दक्षिण भारतीय भाषाओं में रचित साहित्यों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है। इसके तीन उपविभागों के अन्तर्गत कन्नड, तमिल व मराठी जैन साहित्य का परिचय प्रस्तुत किया गया है।
भाग-८, अपभ्रंश साहित्य का परिचय- प्रायः अप्रकाशित.
उपयोगिता- इसके उपयोग से विद्वानों तथा शोधकर्ताओं का कार्य अत्यन्त सरल हो जाता है। ग्रन्थसूची तथा संशोधन-संपादन के कार्य में इस के उपयोग से बहुत ही सरलता होती है। इसके अध्ययन से आगमादि जैन साहित्य, उसके
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