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श्रीबंभणवाडा मंडण श्रीमहावीर स्तवन
संजयकुमार झा
प्रत परिचय प्रस्तुत कृति का संपादन कार्य आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा की एकमात्र हस्तप्रत के आधार से किया गया है. यह प्रत श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भांडागार के क्रमांक- ८३६९ पर है. अक्षर सुन्दर व सुवाच्य है. प्रत लेखनोपरान्त छुटे हुए पाठ की पूर्ति एवं अशुद्धियों के परिमार्जन हेतु उपयुक्त स्थलों को योग्य रूप से सुधारा गया है. सुन्दर पार्श्वरेखा, विविध चित्रों के मध्य पत्रांक, मध्य भाग में लाल वर्तुल बिन्दी सहित कुण्डाकृति, क्वचित् शीर्षस्थ पंक्ति में कलात्मक मात्राएँ आदि साज-सज्जाएँ प्र के सौन्दर्य को आकर्षक बनाती हैं. प्रतिलेखन पुष्पिका में उल्लिखित लेखन काल विक्रम संवत् १६८२ है. पुष्पिकान्तर्गत प्रतिलेखक ने अपना परिचय ॥ पं. श्री श्री श्री २ श्रीजयरत्नगणि तत्शिष्य गणि श्री श्री३ श्रीराजरत्नगणि तत्शिष्य भुजिष्य कीर्त्तिरत्न लखितम् ॥ इस प्रकार दिया है. प्रतिलेखक मुनि कीर्त्तिरत्न पं. श्रीजयरत्नगणि के प्रशिष्य व श्रीराजरत्नगणि के शिष्य हैं. श्री राजरत्नगणि रचित नवकार रास में गुरुपरम्परा सविस्तृत वर्णित है, जिसमें कृतिकार आचार्य सोमविमलसूरि का गुरु सहित उल्लेख मिलता है. अतः कहा जा सकता है कि कृतिकार की शिष्य परम्परावर्ती विद्वान मुनि श्री कीर्तिरत्न द्वारा ही यह प्रत लिखी गयी है. प्रतिलेखन पुष्पिका में यद्यपि गच्छ का उल्लेख नहीं हैं किन्तु, गुरुशिष्यपरम्परा देखने से ये सभी विद्वान तपागच्छीय होने के कारण प्रतिलेखक को तपागच्छीय मानने में आपत्ति नहीं होनी चाहिये. इस तरह प्रत की महत्ता में और अभिवृद्धि होती है. अब प्रत के भौतिक व लाक्षणिक परिचय की संक्षिप्त झलक अग्रलिखित रूप से देख सकते हैं
प्रत क्रमांक - ०८३६९, प्रतनाम - बंभणवाडा महावीरजिन स्तवन, पूर्णता र-संपूर्ण, कुल पत्र संख्या-५,
प्रकार -
लम्बाई- २४ से.मी., चौड़ाई १०.५, कुल पंक्तियाँ - १३, पंक्ति में औसतन कुल अक्षर-४४ से ४६, लेखन वर्ष - १६८२, लाक्षणिक चिह्न - फुल्लिकामध्य-वापी - गोलचंद्र; चित्र-अंक स्थान में - सादा (रेखा चित्र), गेरु लाल रंग
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