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संपादकीय
डॉ. उत्तमसिंह श्रुतसागर का यह नूतन अंक आपके करकमलों में सादर समर्पित करते हुए अपार आनन्द की अनुभूति हो रही है। इस अंक में गुरुवाणी शीर्षक के तहत आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा. द्वारा लिखित 'समकितीनी परीक्षा' नामक लेख प्रकाशित किया जा रहा है, जो हमें गुणानुरागी बनने की प्रेरणा देता है। वीतरागीय धर्म की प्राप्ती हेतु गुणानुराग श्रेष्ठतम साधन है और गुणानुरागी ही सम्यक्त्व प्राप्त कर परमात्मा को पा सकता है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. कृत पुस्तक 'Beyond Doubt' से क्रमबद्ध श्रेणी के तहत संकलित किया गया है। ____अप्रकाशित कृति प्रकाशन के तहत प्रस्तुत अंक में आचार्यश्री सोमविमलसूरिकृत 'श्रीबंभणवाडामंडन श्रीमहावीरजिन स्तवन' नामक प्राचीन कृति प्रकाशित की जा रही है। इसकी रचना राजस्थान के सिरोही शहर के पास स्थित 'बामणवाडा तीर्थमंडन' चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी को लक्ष्य में रखकर की गई है। मारूगुर्जर भाषाबद्ध इस कृति का प्रकाशन वि.सं.१६वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में लिपिबद्ध हस्तप्रत के आधार पर किया जा रहा है जो श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा के ग्रन्थागार में संग्रहीत है।
पुनः प्रकाशित लेख श्रेणी में इस बार मुनिराज श्री दर्शनविजयजी म.सा. द्वारा लिखित व जैन सत्यप्रकाश में प्रकाशित मथुरानो कंकाली टीलो' नामक संशोधनात्मक लेख प्रकाशित किया जा रहा है। इस लेख में वर्णित ऐतिहासिक नगरी मथुरा के कंकाली टीले से प्राप्त भगवान महावीर के जीवनप्रसंगों से संबंधित दो महत्त्वपूर्ण घटनाओं विषयक पुरातन प्रस्तरचिलों व खण्डित शिलालेखों का विशद् विवेचन किया गया है जो जैन स्थापत्य, इतिहास और पुरातात्त्विक साक्ष्यों की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण है।
समाचारश्रेणी के तहत राष्ट्रसंत आ.भ.श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के ८१वें जन्मोत्सव-समारोह गुरुपर्वोत्सव' व 'श्री महुडी तीर्थ श्वे. म. जैन संघ' में आयोजित कार्यक्रमों आदि विषयक समाचारों का संकलन किया गया है। ____ आशा है इस अंक में संकलित सामग्री द्वारा हमारे वाचक लाभान्वित होंगे . व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से अवगत कराने की कृपा करेंगे।
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