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श्रुतसागर
अक्तूबर-२०१५ इणी परि जे रोगहतणी ए, वली अनेरी जाति जपता जाइ दूरि सवे॥ निरमालडी जिनवर नाम प्रणाम मणोरही ए॥९८॥ तुं जिन बंधव माय-ताय, तु मित्त सुहंकर, असरण सरण तुंनाथ मुझ, तु दीन दयापर। तुं जगगुरूदेवाधिदेव, तुं मझ सुखकारण, दहसागरमांही पडत जीव तेहनि तुं तारण। तुझ समु समरथ कोई नहीं ए, जगमाहिं जओ देव, पामी पाय तुमारडाए। निरमालडी नवी करू बीजी सेव मणोरही ए॥९९।। मुहरा मूली मंत्र तंत्र, मंत्रखर अवर, कांइ आराहं जु तम्हे, लही सेवा जिनवर । शाइणि डाइणि भूत प्रेत, व्यंतर विकराल, करि केसरि चोरारि मारि, जल जलणहि झाल। विसहर विस दरिइं वलइए, वीर जिणेसर नाम, सेवता सवि उपसमइए। निरमालडी ए, सीझइ वंछित काम, मणोरही ए॥१००॥ भवीअण भाव धरीअजेह, करि पूज त्रिकाल, तेह घरि वाजइ ति वलतूर, मद्दल कंसाल। हय गय रथ पायक कोडि, बहुपुत्र कलत्र, पुहवीकेरुं राज तेह। पामइ इक छत्त, जग जन मोहन ते नरू ए. हुइ लील विलास, वीरजिणेसर सेवतां ए। निरमालडी पुहचइ वंछित आस मणोरही ए॥१०१।। तुझ नाम छि राजरीद्धि, सुखसंपति सार, मांगिउ आपइ एक मुझ, गुणमहिमा भंडार। तुझ पयपंकजतणीअंसेवि, दिओ अति दिन मुझ, पय प्रणमी नि विनवू, हुं सेवक तुझ । पूरब पुण्य पसाउलि ए. पाम्यउ त्रिभुवननाथ,
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