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श्रुतसागर
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पहिल पुतु जाम, ताम पेख्या श्रीजिनवरू ए । चिंतइ ए हरि हर ब्रह्म, चंद सूर कइ रतिवरू ए ॥ ८६॥ गाजतओ गुहरओ मेह, देह सोवन परि दीपतु ए । देखी ए पी संक, रखे मुझ ए जीपतु ए ॥ ८७ ॥ जगगरू ए परम दयाल, बोलावइ नामिदं करी ए । सही मुझ नाम, हवइ हुं जीपसि एहनई ए ॥ ८८ ॥ मनतणु ए संसय जेह, ए कहइ जु माहरु ए । तओ हुं ए पाए लागि, सीस थाउं जिन ताहरु ए ॥ ८९ ॥
एतलइ ए श्रीजगनाथ, वेदपद जीव थापीओ ए । तेतलि ए लीधी दीख, गणधरपदवी आपीउं ए ॥ ९० ॥
अनुक्रमिई एह अग्यार, गणधर पदवी ते वरइ ए । त्रिपदी ए लहीअ सिद्धांत, रचीअ नि संसय हरइ ए || ९१||
पुहवि ए कर विहार, भवीअण जिण पडिबोहता ए । मोहता ए इंद निरिंद, पापतिमर भर मोहता ए ॥ ९२ ॥
।। ढाल-७ निरमालडीनु ।
केवलमणि नि ओहिनाण वर वैक्री लबधि, ता पुहता मुगति सरग के सव्वट्ठसीद्धि । चऊद सहस चारित्रधार,
वली सहिस छत्रीस समणी नि समकीतधार ।। श्रावक सुजगीस डओढ लाखनइ,
सहस नव नवइ तत्त्वना जाण । सहिस अढार नि लाख त्रणि निरमालडी ए. श्रावी (क)नु परिवार मणोरही ए ॥ ९३ ॥
अत्थिगामि चउ मासि एक चंपाइ, तन्नि वाणिज नि वैशालगामि ।
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अक्तूबर २०१५