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श्रुतसागर
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प्रणमि जिनवर मात, पंचरूप विख्यात ।
करि लेई जिनवरु ए. चालइ पुरंदरू ए ॥१८॥ आव्या मेरुगिरि शृंगि, जिनपति लेई उछंगि । सठ सुरधणी, भगति करइ घणी ए ॥ १९ ॥ निर्मल सलिल भृंगार, लेई अतिहिं उदार । मनसिउं चिंतवइ ए, किम करदुं हवइ ए ॥२०॥ लघु वहइंनाह जिणसूर, किम सहिसि जलपूर । जिन भाव जाणीओ ए, मेरु कंपावीओ ए ॥२१॥
थरहरिआ मेरु गिरंद, झलझलीआ सुरवृंद । सायर झलझलइए, गिरि सिरि टलटलइ ए ||२२||
फूटी सरोवर पालि, तरूअर हालइ डालि । सुरपति चींतवइ ए. ए स्युं संभवइ ए ॥ २३ ॥ अवधि जोउं जाम, जाणिउं वीरजिन काम | खामइ पय नमी ए, खमं जिन उपसमी ए ||२४||
वृषभशृंगथी द्वार, ढाल तिम भृंगार । ओछव अति करइ ए. पुण्य पोतइ भरइ ए ॥ २५॥ मुंक्या जननी पासि, नंदीसर उल्हासी । अट्ठाही करइ ए, जिनठामि संचरइ ए ||२६||
ढाल- ३ ईशानेन्द्र खोलइ लीइ ए
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हवइ सिद्धारथ राजीओ, ओच्छव करइ अपार रे ।
दान मान दिइ अतिघणां सुर करइ जय-जयकार रे || आंचली ॥
अक्तूबर २०१५
धन-धन त्रिसला माडली, धन्न सिद्धारथ तात रे ।
धन्न-धन्न जिण कुलि अवतर्या, वीरजिणंद विख्यात रे ||२७|| धन-धन त्रिसला।।
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धवल मंगल द्यई भामिनी, घरि-घरि वन्नरमाल रे ।
घरि-घरि हुइ रे वद्धा (धा) मणां, दीजइ दान विशाल रे ॥ २८॥ धन-धन त्रिसला ॥