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श्रुतसागर
अक्तूबर-२०१५ धम्मिल रास- रचना संवत् १५९१, गच्छनायकपट्टावली सज्झायतपागच्छीय (र.सं.१६०२), श्रेणिकराजा रास अपर नाम सम्यक्त्वसार रास (र.सं.१६०३), चंपकवेष्ठि रास (र.सं.१६२२, अभिनंदनजिन स्तोत्रसावचूर्णिक कल्पसूत्र-टबार्थ, १० दृष्टांत गीत, दिनमान चौपाई, लोकनालिकाटबार्थ, इसके अतिरिक्त छोटी-बड़ी और भी रचनाएँ हैं.
इनसे सम्बन्धित विस्तृत जानकारी हेतु इनके ही शिष्य आनंदसोम द्वारा रचित सोमविमलसूरि रास तथा इनकी शिष्य परम्परा में उपा. राजरत्न रचित नवकार रास में सविस्तृत वर्णन मिलता है. अन्त में एक ठोस तथा महत्त्वपूर्ण बात तथा गौरव की बात है कि श्रेणिक रास नामक कृति जो इनके हाथों से लिखी गयी है, वह प्रत अपने यहाँ यानि कि कोबा ज्ञानभंडार में प्रत नं.५४१२१ पर उपलब्ध है. ॥ श्रीबंभणवाडामंडणश्रीमहावीर स्तवन ।
_मा श्रीगुरुभ्यो नमः॥ सरसति शुभमति दिउ मनरंगि, ऊलट अधिक आणी अंगि। गाओ सहुं श्रीवीरजिणंद, हीअडइ आणी अति आणंद ॥१॥ पुप्फोत्थरथी चबीआ सामि, अवतरीआ बंभणकुंडगामि। आसाढस(सु)कल छठि अति आणंद, रिषभरिणि नारी देवाणंद ॥२॥ चऊद सुपन पेखइ तेणइ वारिं, हरषी प्रीयनइ कहइ विचारि । हुसइ पुत्र तुझ अति गुणवंत, बुद्धिवंत अनइ बहु जसवंत ॥३॥ जाणी इंद्र भगति चित्ति आवि, हरणेगमेषी देव जणावि। भख्या(भिक्षा)चरकुलि आव्या सामि, न हुइ जनम जउ खितीयकुंड गामि ॥४॥ सिद्धारथ नरवरनी नारि, त्रिसला कूखि करिउ अवतार । आसो वदि तेरसि दिनसार, देविइं कीधउ गर्भाप्र(प)हार ।।५।। दीठां सुपन सवि मझमराति, पहिलउ गज दीठउ भद्रजाति। बीजइ वृषभवर त्रीजइ सीह, चओथ लखमी अकल अबीह ॥६॥
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