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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अगस्त-२०१४ लिपि के अभाव में अनेक भाषाएँ उत्पन्न होकर नष्ट हो गईं। आज उनका नामोनिशान तक नहीं रहा। लिपि भी इससे अछूती नहीं रही। ललितविस्तर आदि प्राचीन ग्रंथों में तत्कालीन प्रचलित लगभग चौंसठ लिपियों का नामोल्लेख मिलता है, लेकिन आज उनमें से अधिकांश लिपियाँ अथवा उनमें लिखित साहित्य उपलब्ध नहीं है। कुछ प्राचीन लिपियाँ आज भी एक अनसुलझी पहेली बनी हुई हैं। उनमें लिखित अभिलेख आज-तक नहीं पढे जा सके हैं। मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर के आस-पास विस्तृत पर्वतों एवं गुफाओं में टंकित 'शंख लिपि' के सुन्दर अभिलेखों को भी आज-तक नहीं पढा जा सका है। इस लिपि के अक्षरों की आकृति शंख के आकार की है। प्रत्येक अक्षर इस प्रकार लिखा गया है कि उससे शंखवत आकृति उभरकर सामने दिखाई पडती है। अतः अनुमान लगाया जा रहा है कि शायद यह शंख लिपि है। विद्वान् गवेषक इन लेखों को पढने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन अभी तक योग्य सफलता नहीं मिल सकी है। खरोष्ठी लिपि को भी पूर्णतः नहीं पढा जा सका है। आज भी विविध सिक्कों, मुदपालों एवं मुहरों पर लिखित ऐसी कई लिपियाँ और भाषाएँ हमारे संग्रहालयों में विद्यमान हैं जो एक अनसुलझी पहेली बनी हुई हैं और हमारे भाण्डागारों की शोभा बढा रही हैं। अतः इतना तो निश्चित कहा जा सकता है कि भाषा और लिपि दोनों ही एकदूसरे के विकास में गाडी के दो पहियों की तरह अहम भूमिका अदा करती हैं। लिपि के अभाव में कोई भी भाषा अपनी निश्चित सीमा से बाहर नहीं जा सकती है। जिन भाषाओं के पास अपनी लिपि है वे आज खूब फल-फूल रही हैं। कुछ भाषाएँ ऐसी भी हैं जिनकी अपनी लिपि तो नहीं है लेकन दूसरी लिपियों में आसानी से लिखी-पढी जा सकती हैं। ये भाषाएँ इतनी शुद्ध, स्पष्ट और व्याकरणसम्मत हैं कि किसी भी लिपि में हूब-हू लिखी-पढी जा सकती हैं। जैसे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, मराठी आदि भाषाओं की अपनी कोई लिपि नहीं है, लेकिन इन्हें किसी भी लिपि में लिखा-पढा जा सकता है। एक प्रकार से देखें तो ये भाषाएँ देवनागरी लिपि पर आधारित हैं। इन्होंने देवनागरी लिपि को विशेषरूप से अपनाया है, लेकिन अन्य लिपियों में भी इन भाषाओं का साहित्य प्राचीनकाल से लिखा जाता रहा है जो हमें विविध ग्रन्थागारों में पाण्डुलिपियों एवं अभिलेखों के रूप में प्राप्त होता है। भाषा और लिपि साम्य-वैषम्य : * भाषा के विकास में लिपि का अत्यधिक महत्त्व है। लिपि के अभाव में भाषा अपनी सीमा और परिधि से बाहर नहीं जा पाती, किन्तु लिपि का आधार मिलते ही १. ललितविस्तर में वर्णित चौंसठ लिपियों में शंख लिपि का नामोल्लेख मिलता है। For Private and Personal Use Only
SR No.525292
Book TitleShrutsagar 2014 08 Volume 01 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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