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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषा और लिपि: एक समीक्षात्मक अध्ययन डॉ. उत्तमसिंह प्राचीनकाल से मानव स्वकीय संस्कृति एवं इतिहास का निर्माण करता हुआ निरन्तर आगे बढ़ रहा है। इसके प्रमाण पुरातन गुहा-चिलों, भवनों के खण्डहरों, समाधियों, मंदिरों तथा अन्य वस्तुएँ जैसे-मृद्भाण्ड, मुद्राएँ, मृणमूर्तियाँ, ईंटें, अस्त्रशस्त्र आदि उपलब्ध प्राचीन सामग्री से मिल जाते हैं। इनके अलावा शिलालेख, चट्टानलेख, ताम्रलेख, भित्तिचित्र, ताडपत्र, भोजपत्र, कागज, कपडा एवं मुद्रालेख आदि भी उसकी अनवरत प्रगति के सूचक हैं। ये ही वे अवशेष हैं जिनके माध्यम से मनुष्य अपने इतिहास का ताना-बाना बुनते हुए नई खोज के साथ एक विकसित और सभ्य समाज का निर्माण करता हुआ प्रगतिपथ पर आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा है। उदाहरणार्थ प्राचीन गफाओं में मिलनेवाले वे चित्र जिन्हें तत्कालीन मानव ने उकेरा था; उन्हें उसके तत्कालीन जीवन का साक्षात् इतिहास कहा जा सकता है। धीरे-धीरे इतिहास और संस्कृति के विकासक्रम में मानव एक ऐसे बिन्दु पर पहँचता है जहाँ एक ओर वह चित्रों से लिपि की ओर बढता है तो दूसरी ओर अपनी भाषा का विकास करता है। इस प्रकार लिपि और भाषा के सहारे आदिकाल से अद्यपर्यन्त तक मनुष्य अपने को प्रतिबिम्बित करता आ रहा है। __ सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ-साथ भाषा एवं लेखनकला का विकास भी होता रहा। प्रारंभ में लिखने के साधन गुफाओं की दीवारें, ईंट, पत्थर, मृदपाल एवं शिलापट्ट आदि थे। देश-काल-परिस्थिति अनुसार ये साधन बदलते गये और लिपि एवं भाषा परिस्कृत होती गयीं। भाषा एवं लिपि का संबन्ध / उद्भव और विकास : भाषा और लिपि का परस्पर अविनाभाव संबन्ध है। इनके उद्भव और विकास का इतिहास आज भी गवेषकों के लिए शोध का विषय बना हुआ है। मानव जब जंगलों एवं गुफाओं में रहता था तब वह अपनी गुफा में जाद-टोने के लिए विविध प्रकार की रेखाओं के माध्यम से कुछ आकृतियाँ बनाया करता था। अपने घोडों तथा अन्य पालतु जानवरों की पहचान के लिए उनके शरीर पर विविध कोटि के चिह्न बनाया करता था। किसी बात को स्मरण रखने के लिए बेलों तथा रस्सियों में गाँठ बाँधकर रखता था। इस प्रकार प्राचीनकालीन मानव विविध साधनों के माध्यम से दीर्घकाल पर्यन्त अपने भावों को प्रकट करता रहा। इन्हीं साक्ष्यों के आधार पर समयानुसार विविध For Private and Personal Use Only
SR No.525292
Book TitleShrutsagar 2014 08 Volume 01 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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