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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19 SHRUTSAGAR AUGUST-2014 आ युवान ते बीजो कोई नहि पण ते हतो बहेचर. बहेचर खूब हिंमतवाळो हतो. बहेचरे समयसूचकता वापरीने भेंसने काबुमां लीधी न होत तो परिणाम कंई जुद ज आवत! आ घटनाने लीधे वडीलोए तेने शाबाशी आपी, मित्रोए मुबारकबादी आपी. मुनिए बहेचरने पासे बोलाव्यो. मुनिए बहेचरने आशीर्वाद स्वरूप धर्मलाभ आप्या. अने वधुमां जणाव्यु के प्राणीने लाकडी न मराय. तारा आ फटकाथी प्राणीने केटलुं दुःख थयु हशे? एने य जीव छे ने? अबोल प्राणी पोतानुं दुःख व्यक्त करी शके नहिं, जीव तो दरेकनो सरखो ज छे. गुरु महाराजना शब्दो एना हैये चोंटी गया हता के जे दुःख आपणने थाय छे तेवू ज दुःख अबोल प्राणीओने पण थाय. बहेचर तो आ वात सांभळीने सडक रही गयो. बहेचरे मुनिने प्रश्न कर्यो के आ कयो तमारो धर्म छे? पोतानो जीव ज्यारे जोखममां होय त्यारे पोतानुं रक्षण करवं नहि? मुनि भगवंते बहेचरने का के “अमारो धर्म छे जैन धर्म. आ धर्म शरीरना बळनी नहि, आत्मबळनी वात करे छे. भाई! सांभळ, मारे ते मोटो नथी, तारे ते मोटो छे." आ वातथी बहेचरन मन विचारना चकडोळे चढ्यु. मुनि भगवंत साथेनो संवाद अने एमनी साथेनी मुलाकात एना दिलमां कोतराई गई. पिता शिवाभाई विचारता के बहेचरने थयु छे शु? ज्यारे घरमां दूध न होय अने दोहवानो वखत थाय त्यारे बहेचर वाछरडाने छोडी मुकतो अने गायन बधं दुध धवडावी देतो. बहेचर एम मानतो हतो के गायना दुध पर मानवीनो नहि पण तेना बच्चांनो एटले के वाछरडानो पहेलो अधिकार छे. वाछरडाने दूध धवडाव्या सिवाय मानवी ते दूध लईने उपयोग करे छे ते खरेखर खोटुं छे. मूंगा जीवनी आंतरडी ककडाववामां एने जीवहिंसा देखाइ. बहेचरने माता-पिताना मरणना समाचार मळता ते विजापुर पहोंच्यो. बहेचरने सौ प्रथम ए विचार आव्यो के हवे मायाना बंधन तूट्यां, दीक्षा लेवानो समय आवी गयो छे. बहेचरे सौनी साथे रडवानु बाजु पर मूकीने हृदयमां शोकनो तीव्र आंचको अनुभव्यो. माता-पिताना मरण पाछळ जमणवार करवानो रिवाज समाजमां प्रचलित हतो. देवू करीने पण लोको मरण पाछळ जमणवारनी क्रिया करता. आना कारणे केटलाये लोको देवादार थइ गया हता. तेथी बहेचरे देवू करीने जमणवार करवाना आ रिवाजनो सखत विरोध कर्यो. आवा कुरिवाजो समाजमांथी नष्ट थवा जोइए ए विचारीने एमने पोते आ क्रिया न करी अने समाजना अंधश्रद्धाभर्या रिवाजो बंध कराववामां अग्रेसर बन्या. For Private and Personal Use Only
SR No.525292
Book TitleShrutsagar 2014 08 Volume 01 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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