________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२६
श्रुतसागर-३४ १२ लाईनमा ३५ जेटला अक्षरो, आलेखन थयुं छे. प्रतनी किनारीओ वधु उपयोगने कारणे जीर्ण थई गई छे, तो क्यांक क्यांक जीवात कारणे छिद्रो पडी गया छे. एकंदरे स्थिति सामान्य छे.
विजयदेवेंद्रसूरि स्वाध्याय आ कृतिनी हस्तप्रत अमारा ज्ञानमंदिरमा ४३४६८ नंबरना क्रमांक पर नोंधायेल छे. वि. सं. १९५५ना आसो वदि ५ना सोमवारे अगस्तपुरनगरमां पंडित दोलतरुचि द्वारा लखायेली छे. आ प्रतमां १ ज पत्र छे. प्रतनुं परिमाण २६.५० x १२.५० छे. प्रतमा १५ लाईनमा ३३ अक्षरोनुं आलेखन थयुं छे.
विजयदेवेंद्रसूरि पाटमहोच्छव स्वाध्याय आज शी(शि)रताज गछराज भले भेटीयो, पाइयो अधिक आनंद तर्नु । गछ चोरासीमां तु अतिदीपतो, जीपतो सत्तु सवि एक छिनमा (में) ॥१॥ तव मुखंबुजवासनी भगवति सामनी, चपलता छांड करमांहि लछि । किति(ती) तुझ द्वैषथी ठांम अण' पांमति, सोय मद आंण दिग्प्रांत गछि ॥२॥ वंस उपकेस वर देस मरूमंडले, नयर सेत्रावो तुम जन्मथाने । मेरु जोम धीरता जगतमें ताहरी, वीचरता जगतीतले कोपमान(ने) ॥३॥ वेदअरुसीद्धवसुंचंद्रसंवछरें(१८८४), माघ सुद प्रतिपदें गुरू वीर आयो । सेर सिरोहि(ही) सवि साधु-श्रावक मिलि, थापीयो तखत गुरूराज पायो ॥४॥ विवी(वि)ध तु(तूर सरणाइ(ई) नाद होवें भला, धवल सीमंतनी सरस गावे । मेघ जिम गाजति वांणी मुख वरसति, श्रोत भवि मोर सुख-चेन पावे ॥५॥ सकलचंद्राननी गोरडी मि(मी)ली एकठी, आय वंदन करें गुरु सिस नामी । हरखभर मोतिये लुंछण लि(ले)वती, जाणति सफल अवतार पांमी ॥६॥ श्रीविजयजिनेंद्रसूरीस पट्टांबरे, उगीयो सहसकिरणावतारी । चोपडागोत्र जस मात सरुपांदे, तात अमीचंद कुल उद्यौतकारी ॥७॥ कोडवरसां लगे प्रतपज्यो गछपति, श्रीविजयदेवेंद्रसूरिसहाया । आंण अखंड चिहुंखंड तुझ विस्तरी, वाजिया जीत डंका सवाया ॥८॥ अखीलभूमंडले सुजस घणुं वा(व्या)पीयो, श्रीतपागछमांहि सहाया । वाचकांप्रवर माणिक्य इम विनवे, गाइयो श्री तपागच्छराया ॥९॥
।। इति श्री विजयदेवेंद्रसूरि पाटमहोच्छव स्वाध्याय ॥
For Private and Personal Use Only