________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विजयदेवेंद्रसूरि संबंधी बे स्वाध्याय
हिरेन के. दोशी
विक्रमनी १९मी सदीमां थयेला आचार्य श्री विजयजिनेंद्रसूरिजी महाराजना शिष्य आचार्य श्री विजयदेवेंद्रसूरिमहाराजना गुणोने प्रकाशित करती आ बन्ने कृति प्रायः सौ प्रथमवार प्रकाशित थाय छे. मध्यकाळना कविओ पासेथी गुणपरक अने गुणप्रेरक आवी अनेक रचनाओ प्राप्त थाय छे. विक्रमनी १९ मी सदीमां थयेला आचार्य विजयजिनेन्द्रसूरि महाराजना शिष्य आचार्य श्री विजयदेवेंद्रसूरि महाराजनी स्तवना आ बन्ने कृतिनो मुख्य विषय छे. बन्ने कृतिओमां आचार्य महाराजना गुणकीर्तननी साथे-साथे एमना जन्मस्थान, गोत्र, अने माता- पिताना नामनो उल्लेख मळे छे. वि. सं. १८८४ना महा सुद १ना सिरोहीमां आचार्य श्री विजयजिनेंद्रसूरिजी महाराजनी पाटे गच्छनायक रूपे बिराजमान थयानो उल्लेख बन्ने कृतिमां समानपणे नों धायो छे. विजयदेवेंद्रसूरिजी महाराजना गच्छनायक पदारोहण प्रसंगे के एना आसपासना समयमां ज आ कृतिओनी रचना थई होवानी संभावना छे.
विजयदेवेंद्रसूरि पाटमहोच्छव स्वाध्याय कुल ९ कडीमां प्राप्त थाय छे. पाटमहोत्सव स्वाध्याय रूपे मळती आ कृतिमां पाट महोच्छव संबंधी विशेष हकीकतोनो उल्लेख थयो नथी. विजयदेवेंद्रसूरि महाराजना गुणोनुं वर्णन करता कवि कहे छे के मुखमां सरस्वतीनो वास हतो, अने हाथमां लक्ष्मीनो वास हतो, आम तो, लक्ष्मी स्वभावे चंचळ होय छे. परंतु गुरुना हाथमां लक्ष्मीना वासनी वात साथे लक्ष्मीना चंचळपणाना त्यागनी वात पण कविए बहु सुंदर रीते रजु करी छे. आगळनी कडीओमां एमनी धीरताने मेरुपर्वतनी अडगता साथै सरखावी छे. तो वळी विजयजिनेंद्रसूरि रूपी आकाशने विजयदेवेंद्रसूरि रूपी सूर्यए वधु तेजस्वी अने प्रकाशमान कर्यानी वात कविए सातमी कडीमां रजु करी छे. कृतिना अंते माणिक्य लखी कर्ताए पोतानो नामोल्लेख कर्यो छे.
कर्ता परिचय :- प्रस्तुत् कृतिना कर्ता माणिक्यविजय विजयदेवेंद्रसूरि महाराजना समकालीन होवानी प्रबळ संभावना छे. कृतिमां वाचकप्रवर शब्दना उल्लेखथी माणिक्यविजय आचार्य महाराजना परिवारमां उपाध्याय पदासीन होवानी साथे अग्रेसर स्थान धरावता होवानुं पण सूचित थाय छे. कर्ताना नामोल्लेख सिवाय कृतिमां अन्य कोई परिचय न मळवाथी कर्ता संबंधी विशेष माहितीनो अत्रे उल्लेख करी शकायो नथी.
विजयदेवेंद्रसूरि स्वाध्याय रूपे उल्लेखित आ कृति कुल ९ कडीमां रचाई छे. प्रस्तुत् कृतिमां गुणस्तवना अने विगत वर्णनमां कविए विविध उपमा द्वारा विजयदेवेंद्रसूरिमहाराजनी स्तवना करी छे. आम तो आ कृति स्वाध्याय करता
For Private and Personal Use Only