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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९ नवम्बर-१३ परिचय : भगवतीसूत्रनी गहुंली आ कृतिनुं नाम भगवतीसूत्रनी गहुँली छे. भगवतीसूत्रनी गहुँली काव्यनी दृष्टिए मनोहर छे. तेमां भगवतीसूत्रनो सामान्य परिचय आपवामां आव्यो छे अने आ महान सूत्र केवी रीते सांभळवू तेनो साधारण विधि दर्शाव्यो छे. कविए अहीं अलंकारो पण प्रयोज्या छे. __ जैन धर्ममा ४५ आगमो प्रसिद्ध छे. आगम एटले महावीर स्वामीए अर्थथी कहेला वचनोने तेमना प्रथम शिष्योए गुंथीने रचेलां सूत्रो. ४५ आगमोमां भगवतीसूत्र सहुथी मोटुं छे. माटे ज कवि कहे छे के - भगवतीसूत्रमा जिनवरनां वचनो पार विनाना छे. भगवतीसूत्रनी विशाळताने कवि उपमा द्वारा समजावे छे के - ते गंगा नदी जेवा छे. पुराणमां एवी कल्पना छे के - गंगा नदी स्वर्गमांथी नीकळी शंकरनी जटामां झीलाइ. त्यांथी पृथ्वी पर हिमालयमां अवतरी. जैन धर्म आवं मानतो नथी. जैन धर्म प्रमाणे भरतक्षेत्रनी उत्तरे आवेला हिमवंत पर्वतमांथी गंगा अने सिंधु नदीओ नीकळी छे. आ बन्ने नदीना प्रवाहनी जेम भगवतीसूत्रना वचनो पार विनाना छे. सूर्यप्रज्ञप्ति नामर्नु प्राभृतरे भगवतीसूत्रनुं उपांगरे छे. भगवतीसूत्र दरिया जेवू विशाळ छे तेमांथी नीकळता अर्थो दरियामां उठतां मोजां जेवां छे. दरियामां उठतां मोजां अनंत होय तेम भगवतीसूत्रना अर्थ अनंत छे. कविए अहीं फरी उपमा अलंकार प्रयोज्यो छे. (कडी-२) भगवतीसूत्रमा एक श्रुतस्कंध छे. १०१ अध्ययन छे. १०,००० उद्देशा छे, ३६,००० प्रश्नो छे. २,८८,००० पद छे. भगवतीसूत्रमा लोक अने अलोकनां स्वरूप, वर्णन छे. भगवतीसूत्रनुं खरं नाम १. जूओ : भगवतीसूत्रनी गहुली कडी-१ २. प्राभृत-दृष्टिवाद नामना बारमां अंगमा १४ पूर्व छे. पूर्वना एक विभागने प्राभृत कहेवाय छे. आनो अर्थ ए थाय के - सूर्यप्रज्ञप्ति नामर्नु उपांग पूर्वमांथी आवेलुं छे. ३. आगमोनुं वर्गीकरण छ विभागमां थयुं छे. अंग, उपांग, छेद, मूल, चूलिका, प्रकीर्णक, शरीरनां मस्तक वगेरे मुख्य अवयव अंग कहेवाय अने आंगळी वगरे अवयव उपांग कहेवाय तेम मुख्य आगम सूत्रने अंग कहेवाय अने तेनी साथे संलग्न सूत्रने उपांग कहेवाय. ४. आगमसूत्रोनो क्रम सरळताथी याद राखवा तेना-श्रुतस्कंध, अध्ययन, उद्देश अने पद आ प्रमाणे विभाग करवामां आव्या छे. अनेक पदनो एक उद्देश बने, अनेक उद्देशनुं एक अध्ययन बने, अनेक अध्ययनोनुं एक श्रुतस्कंध बने. एक आगममां एक के एकथी वधु श्रुतस्कंध होय, अहीं पद वगेरेनी जे संख्या दर्शाववामां आवी छे तेटला हाल उपलब्ध नथी. For Private and Personal Use Only
SR No.525284
Book TitleShrutsagar Ank 2013 11 034
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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