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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५ नवम्बर - १३ ग्रंथ संग्राहकनी प्रशस्ति ग्रंथ लेखकना अक्षरोथी भिन्न अक्षरोमां तथा थोडा वधु पडता गीच तेमज मरोडदार अक्षरोमां लखाइ छे. भावार्थ - पंडित मेह मुनिना शिष्य २२ लाख पुस्तकोना संग्रहालयवाळा अथवा २२ लाख द्रव्य पुस्तक माटे वापरनारा पंडित क्षेमकुशले सुरतबंदरमां घणा साधुपुरुषोना अभ्यासने माटे पुस्तकालय बनाव्युं. ते भंडारमां रहेलु, विचक्षण पुरुषो वडे वंचातु आ आवश्यकसूत्र ज्यां सुधी चंद्र अने सूर्य होय त्यां सुधी चिरंजीवो. ( सचवातुं रहो ). अहिं बीजी प्रशस्तिमां 'द्वाविंशतिलक्षपुस्तकव्ययिना' पद आश्चर्य उपजावे छे. २२ लाख पुस्तकोना संग्रहालयवाळा अथवा २२ लाख द्रव्य पुस्तक माटे वापरनारा एम २ अर्थो विचारी शकाय जो के प्रथम अर्थ करता बीजो अर्थ वधु संगत थाय कारण के २२ लाख हस्तप्रत ( पुस्तको) नो संग्रह एक अकल्पनीय घटना छे. पूर्वे ज्यारे अधिक मात्रा (प्रमाण) मां रखायेल उपधि पण परिग्रहरूपे गणातीत्यारे मुनिभगवंत वडे आटली मोटी संख्यामां रखायेल पुस्तको माटे शुं विचारवं ? बीजु आज समयगाळामां ज्यारे हीरविजयसूरिजीना गुणोथी आकर्षाई सम्राट् अकबरे सूरिजीने आग्रानो भंडार आपवा जणाव्यं हतु त्यारे पुस्तकादिने परिग्रहरूप जणावी सूरिजीए ते स्वीकारवानी ना कही हती तेम दृष्टांत पण मळे छे, तेथी प्रथम अर्थ विचारता बराबर बेसतो नथी. जो के प्रशस्तिमां ज लखायेल 'स्वकीय पौस्तकः कोश:' पद लेखकना पोताना भंडार (लायब्रेरी) नी ओळख करावे छे. कदाच हीरविजयसूरिजीनी आसपासना तुरंतना काळमां अध्ययनादिमां उपयोगी पुस्तकादि सामग्रीने परिग्रह रूपे न गणता आवा प्रतसंग्रहनी व्यवस्था शरू थई होय तेम बने छता आवडी मोटी संख्यामां पुस्तकोनो संग्रह थयो होय तेवुं मानवा मन तैयार नथी. बीजा अर्थने उंडाणथी विचारीए तो उपरोक्त मुनिभगवंते अन्य कोई समृद्ध श्रावकोनी पासे द्रव्यना व्यये स्वर्ण, रौप्यादि शाहीथी ग्रंथो लखाव्या होय, जीर्ण प्रतोनो उद्धार कराव्यो होय, पुस्तकादि खरीदाव्यु होय, ज्ञानभंडारनुं नूतनीकरण कराव्युं होय तेम करता पूज्यश्रीनी प्रेरणाथी उपरोक्त रकमनो कुल व्यय आटलो थयो होय तेम बने. पूर्वे परमार्हत् कुमारपाळ, महामात्य वस्तुपाल, सोनी संग्राम शेठ शांतिदास जेवा श्रावकोए घणु द्रव्य खरची श्रुतरक्षा कर्याना घणा उल्लेखो मळे छे. मूळे पूज्यश्रीनी प्रेरणाथी श्रुतसंरक्षण-संवर्धन थतु होइ पूज्य श्रीने माटे 'द्वाविंशतिलक्षपुस्तकव्ययिना' एवं विशिष्ट विशेषण वपरायु होय तेम विचारी शकाय आम बीजो अर्थ वधु संगत होय तेम लागे छे. छतां आ अंगे विद्वानो अमारुं योग्य मार्गदर्शन करशे एज आशा. अत्यारे ज्यारे समृद्ध श्रावको पण श्रुतभक्तिथी विमुख थई रह्या छे त्यारे आ नोंध वाच्या बाद तेओ वधुने वधु श्रुतभक्तिमां उद्यमवंत बने एज अभिलाषा. For Private and Personal Use Only
SR No.525284
Book TitleShrutsagar Ank 2013 11 034
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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